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लघुविद्यानुवाद
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निकल जाता है, किसी के किये हुये, स्तम्भन प्रयोग, शस्त्र, पाणी, अग्नि, भूकम्पन आदि उपसर्ग, सर्प, सिह वगैरे हिसक प्राणियो के भय, तुम्हारे स्मरण से दूर हो जाते है। दरिद्रता, ग्रहो की पीडा, रोग, शोक आदि सब शात हो जाते है, सौभाग्य तथा लक्ष्मी की प्राप्ति तुम्हारा नाम लेने वाले को होती है ।। ३०॥
भक्तानां देहि सिद्धि मम सकलमधं देवि ! दूरी कुरुवं सर्वेषां धामिकानां सततनियततं वांछित्तं पूरयस्य । संसाराब्धौ निमग्नं प्रगुरणगरगयुते जीवराशि च त्राहि श्रीमज्जैनेद्र धर्म प्रकटय विमलं देवि ! पद्मावति ! त्वम् ॥३१॥
(३१) भक्त जनो को सिद्धि देने वाली हे पद्मावती देवी मेरे सर्व पापो को तुम नाश करो, सर्व धार्मिक मनुष्यो के नित्य ही मनोवाछित पूर्ण करो, सम्पूर्ण जीव राशि की रक्षा करो, जो ससार समुद्र मे डूब रही है । हे पद्मावती देवी आप पवित्र जिनेश्वर के द्वारा प्ररूपण किया हुआ जिनधर्म की महिमा को बढायो ।।३।।
विधि नं० ३
श्लोक नं० ३१ (३१) इस श्लोक का शुद्ध मन से निरन्तर पाठ करने से भगवती साक्षात दर्शन देती है, और साधक के मनोवाछित पूर्ण करती है ।।३१।।
दिव्यं स्तोत्रं पवित्रं पटुतरपठतां भक्तिपूर्व त्रिसन्ध्यं लक्ष्मी सौभाग्य रूप दलितकलिमलं मङ्गलं मङ्गलानाम् । पूज्यं कल्यारणमाद्य जनयति सततं पार्श्वनाथ प्रसादाद् देवी पद्मावती नः प्रहसित वदना या स्तुता दानवेन्द्रः ॥३२॥
(३२) इस दिव्य और पवित्र स्तोत्र को शुद्ध और पवित्र वस्त्रो को पहनकर भक्तिपूर्वक प्रात काल मे, मध्यान्ह, सायकाल मे पाठ करने वालो को निरन्तर सौभाग्य लक्ष्मी की प्राप्ति होती है. सब पाप कर्मों का नाश होता है, सर्व मगलो मे मगल रूप है, इस स्तोत्र का पाठ करने से प्रभु पाश्वनाथ की कृपा से प्रसन्न मुख वाली और दानवेद्र, राक्षस आदि स्तुत्य ऐसी भगवती पद्मावती देवी निरन्तर कल्याण करो ॥३२॥