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लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-लक्षं लक्षणं लक्ष्यते च पयसा संशुद्ध मानोर्जलम क्षीरणे दक्षिण पश्चिमोत्तर
पुरः षट्म त्रयद्वये मासैकम । मध्ये क्षिद्रगतं भवे दश दिन, धूमाकुले तछिने, सर्वज्ञ परिभाषितं, जिनमते
आयुर्प्रमाणं स्फुटं ॥१॥ अर्थ -निर्मल भोजन मे जल भर सम ठामे (वर्तन) मे रोगी ने दिखावी जै जो सूर्य दक्षिण
हीन दीखै तो छ मास जीव । पश्चिम हीन दीखै तो ३ मास जीवै, उत्तरहीन दीखै तो २ मास जीव, पूर्वहीन दीखै तो २ मास जीवै। जो मडल सछिद्र देखै तो १० दिन जीवै । धूभाकुलित देखै तो तिहि (उसी) दिन मरे । यह मृत्यु जीवित शान सर्वज्ञ
देव कहो। मन्त्र :-ॐ नमो भगवती कूष्मांडनी क्षां ह्री ग्वी शासनदेवी अवतर २ दीपे दर्पणे
क्ति ब्रू हि २ स्वाहा । विधि -बार १०८ मन्त्रि पढी जै विधि सू पूजा कीजै माता प्रत्यक्षा भवेत् । मन्त्र :-ॐ नमो चक्र श्वरी, चक्रवेगेन वाम हस्ते अचलं चालय २ घटं भ्रामय २ श्री
चक्रनाथ केरी आज्ञा ही प्रावतों स्वाहा । विधि :-पूर्व जाप १०८ चावल मन्त्र घडा माहि (डाले) ना खिजै घटो-भ्रमति । मन्त्र .--ॐ ह्री नमो पाइरियाणम् भव्य पश्चिम द्वार बधय २।
ॐ नमो उवज्झायाण म्म्ल्व्यू उत्तर द्वार बधय-वधय । ॐ ह्री णमो लोए सव्व साहूण कम्ल्व्यू अधोद्वार बधय-बधय । ॐ ह्री णमो अरिहताण स्म्ल्व्यू अग्रद्वार बधय-बधय । ॐ ह्री णमो सिद्धाण म्ल्व्य नैऋत्य द्वार बधय-बधय । ॐ ह्री णमो आयरियाण म्म्यं पवन द्वार बधय-बधय । ॐ ह्री णमो उवज्झायाण म्व्यं ईशान द्वार बधय २ । ॐ ह्री णमो लोए सव्वसाहूण रम्य उत्तर द्वार वधय बधय प्रात्म विद्या
रक्ष-रक्ष। ॐ ह्रां ह्रीं हह्रौ ह्रः क्षां क्षी क्षः म्ल्व्य पर विद्यां छिद छिद देवदत्त स्वाहा। क्षां क्षी क्षी क्ष्यः क्षी झू क्षौ क्षः क्षेत्र पालय वन्दि मोक्षं कुरु कुरु स्वाहा ।