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________________ लघुविद्यानुवाद ४८७ वधूवद्यपादार विदे ! अमरवरागनानमस्यमानचरणपकेरूहे । कीदृशे । चचच्चडासिधाराप्रहतरि पुफुले | चडा चासौ प्रसिधारा च, चडासिधारा चचती चासो चडासिधारा च चचच्चडासिधारा तया प्रहत विनाशित रिपुकुल शत्रुसमूह यया सा चचच्चडा० रिपुकुलः तस्या सबोधन, चचच्चडा० रिपुकुले। देदीप्यमान प्रचण्डमगलानधारा व्यापादित (विध्वसित शत्रुसमूहे) पुनरपि कीशे ! कु डलोद्धृष्टगल्ले ! कुडलाभ्या उद्धृष्टौ गल्ली गडौ यस्याः सा तस्या सवोधनम् कु डलोद्धृष्टगल्ले । कर्णवेष्टकोद्धृष्टमारणगडस्थले। पुनरपि की दृशे श्रा श्री श्र श्री स्मरती श्रा च, श्री च श्र च, श्रौ च तानि स्मरती ध्यायती एतेषाम् पवाक्षराणा मत्र दर्शयन्नाह–कम्यं नामगभितस्य बाह्य म्ल्यू वेष्टयं च बाह्य षोडशस्वरान् लिखेत् । बहिरष्टदलेषु क च छ य ट र भ म ल व यू पिडाक्षराणि दातव्यानि बहिः कम्व्यू म्ल्यू छम्ल्यू इयं रम्यं व्यं भव्यू म्म्ल्यू अष्टदलेषु ब्रह्माणी १ कुमारी २ ऐद्राणी ३ माहेश्वरी ४ वाराही ५ वष्णवी ६ चामु डा ७ गाधारी ८ ॐकार पूर्वमत्रमालिख्यते । बाह्य स्म्ल्व्यू हा ह ह आ क्ली ब्ली द्रा द्री पद्मावती श्रा श्री श्र श्री श्र हु फट् स्त्री स्वाहा । एषा विद्या अष्टोत्तर सहस्त्र प्रमाण करजापेन क्रियमाणेन दशदिश पर्य'ने सर्वकार्याणि सिद्धयन्ति । पु .रपि कीदृशे मदगजगमने मदेनोपल क्षितो गजो मदगज' तद्वद्गमन गतिर्यस्या सा तस्या. सबोधन, मदगज गमने ।।८।। साप्रतमुपसहरन्नाह ॥ श्लोकार्थ नं. ८ प्रात काल के उगते हये सूर्य की किरणो का जैसा रग सिदूर वर्ण के समान अथवा सायकाल के अस्त होने के समय जो लाल रग है उसके समान रग वाली, देवलोक की अप्सरायो जिसके चरण कमल पूजित, ऐसो देदीप्यमान और भयकर तलवार की धार से शत्र ओ का नाश करने वाली, दोनो कानो मे पहने हये कु डलो से जिनके गड स्थल घिस गये है, श्रा श्री श्र श्र. इन चार अक्षरो का स्मरण करती हुई, मदोन्मत हस्तिनी क चाल से चलती हुई हे पद्मावती देवी मेरी रक्षा करो ।।८।। श्लोक नं. ८ के यंत्र मंत्र क्म्यं मे देवदत्त गभित करके, बाहर म्ल्यू वेष्टित करके ऊपर वलय बनावे । उस वलय में सोलह स्वर लिखे ऊपर से एक अष्टदल का कमल बनावे । उन दलो मे क्रमशः कम्यं च छळ (इम्यं ) दम्यू व्यं भव्यू म्ल्यू (स्म्य ) म्म्ल्यू लिखे। ऊपर से अष्टदल कमल और बनावे, उसमें भी क्रमशः ब्रह्माणी, कुमारी ऐद्राणी माहेश्वरी वाराही
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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