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लघुविद्यानुवाद
अथ मन्त्र: ॐ क्षु द्रा ह्री असि पाउसा इवी क्लो ब्लो माहय २ मोहिनी स्वाहा ॐ असि पाउसा इवी क्ली ब्ली कर्माणि शोषय २ र र र र र धग २ ज्वालय २ स्वाहा ।
ॐ श्ली श्ली श्ले श्ल विजये जये रौद्र मूर्ते त्रिनेत्र स्वाहा । ॐ वज्र क्रोधे चक्रे भीमे भ्रा भ्री भ्रू भ्रौ भ्र चक्र भ्रामय २ स्वाहा । ॐ रु रू रौ ह कराले भगवति वरदे स्वाहा। इत्येव चत्त्वारि मत्राणि मोहन शोषण विजयो उच्चाटनाना पचमो वरद विधि पञ्च कर्मणा ज्ञेय फल लिखित मेव ।
अथ बीजोत्पत्ति ॐ अ अरिहत अशरीर 'अ' आचार्य 'या' स वर्ण दीर्घ त्वा 'दा' उपाध्यायस्य ऊ पदेन प्रो इतिमुने 'मकारस्य' अनुस्वारेण कृते, सिद्ध फल-मिति मोक्ष रूप क्ष त्रैलोक्यग्रसन उ काल वक्त्रा क्षोभरण, फल द्रा काम बीज 'ही' मोहन बीज (श) श्वडीश स ल बल भेदी ए' ऊर्द्ध केशी ऐ उग्न भैरवी श्ले श्लै फल प्रालिगनादि करणत्व फल र क्षत ज काल वक्त्रा 'ऊ' विदारी ऊ डाकिनी
यन्त्र न० ४
ॐचूद्रोही मोहयमोहय मोहनिश्तांग्लाश्लें ।
भौं भ्रः चक्रं भामय भ्रामया इ.
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श्लें विजय जप जय रूबै रौं हः ॥
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चीज एतत्त्रय मोहन बीज रू शोषण बीज रू उच्चाटन वीज रौ ह सकल शून्य । इति ।