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लघु विद्यानुवाद
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सम ज्वरं दुष्ट ज्वर विनाशय २ सर्व दुष्टान्नाशय २ ॐ ७ र ७ हो स्वाहा २य. ३ ।
विधि
: - इस मन्त्र को अष्टमी अथवा चतर्दशि को उपवास करके १०८ बार जपने से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है । और यह मन्त्र सर्व कार्य के लिए काम देता है ।
मन्त्र :- ॐ झांझीं झौ भूः ।
विधि :- इस मन्त्र से डोरा रगीन वड करके २१ बार मन्त्रित करके हाथ मे बाधने से तृतीय ज्वर नाश होता है ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं प्रप्रति चक्र े फट् विचक्राय स्वाहा । ( सर्व कर्म भरा मन्त्र )
विधि - विशेषत शाकिनी गृहं तस्य सर्षापान् गृहीत्वा शाकिन्या कर्षयेत् । एकैक सर्षपं सप्ताभिमन्त्रीत कृत्वा जलभृत कटोरक मध्ये क्षिपेत् ये तरति ते शाकिन्यः समेन शाकिन्यः विषमेण भूत प्रथ न तदा भूत शाकिनी मध्याद् एकोपि ना अनेन मन्त्रेण सप्ताभि मन्त्रीत कृत्वा उदुषल ताडयेत् यथा २ ताडयेत् तथा २ श्राक्रदति । एतेन् चावर सप्ताभि मंत्रित कृत्वा उद्धी कृत्य स्फोटयेत् रुपिष्यो नश्यति श्रनेन् मन्त्रेण युग्मगृहीत्वा सप्ताभि मन्त्रीता क्रित्वा उद्वीकृत्य स्फोटयेत् रुपिण्यो नश्यति । अनेन मन्त्रेण प्रजा लिडि कामे काकी विध्यात् शाकिन्या गृहीतस्य खट्वाघ शराव स पुट धारयेत् शाकिन्यो नश्यति रक्षा वधयेत् ।
मन्त्र :- ॐ क्रां क्रीं क्रौ क्षः हः रः फट् स्वाहा ।
विधि
- इस मन्त्र को सरसो लेकर पढता जावे और रोगी के उपर सरसो डालता जावे तो भूतादिक रोगी को छोडकर निश्चित ही भाग जाते है ।
विधि
मन्त्र :- ॐ चन्द्र मीलि सूर्य मीलि स्वाहा ।
विधि
- इस मन्त्र से डोरे को २१ बार मन्त्रित करके जिसकी प्राख (चक्षु) दुखती हो उस मनुष्य के कान मे उस डोरे को बाधने से चक्षु रोग पीडा नष्ट होती है ।
मन्त्र :- ॐ नमो आर्या व लोकिते स्वराय पके फुः पद्म वदने फुः पद्म लोचने
स्वाहा ।
- भस्म वार २१ जपित्वा टिल्लक त्रियतेततो दृष्टि दोषो निवर्त ते हस्तवाहन च । इस मन्त्र से भस्म २१ बार जप कर तिलक करने से दृष्टि दोष याने नजर लगी हो तो ठीक हो जाती है ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं प्रग्र कुष्मांडिनी कनक प्रभेसिंह मस्तक समारुडे अवतर २ अमोघ वागेश्वरी सत्यवादिनी संत्यं कथय २ ॐ ह्री स्वाहा ।