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लघुविद्यानुवाद
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यन्ना लिखने बैठे तब तक पूर्व दिशा की ओर मुख रखना चाहिये, आसन सफेद लेना चाहिये, उत्तम बताया है लिखते समय मौन रख कर लिखने के विधान को पूरा करले, व जब यन्त्र लेखन पूरा हो जाय जब यन्त्र को एक स्वच्छ पट्टे पर स्थापन अगर बत्ती लगा देवे दीपक स्थापन करे और ढाई घडी दिन बाकी रहे तब अर्थात सूर्यास्त से ढाई घडी पहले हुये यन्त्रो को ऊचे रख कर पानी से धोकर कागज भी जलाशय मे डाल देवे । यह सब क्रिया समय पर ही करने का पूरा ध्यान रखे । एक विधान ऐसा भी है कि बहत्तर यन्त्र अलग-अलग कागज पर लिखना चाहिये । और कोई एक कागज पर लिखना बताते है । जैसा जिसको ठीक मालूम हो सुविधा अनुसार लिखे। इस प्रकार से बहत्तर दिन तक ऐसी क्रिया करना चाहिये और बहत्तर दिन ब्रह्मचर्य पालना चाहिय सत्य निष्ठा से रहना और कुछ तपस्या करे जिससे क्रिया फलवती होगी। इस प्रकार से बहत्तर दिन पूरे हो जाय और तिहत्तरवे दिन १ प्रात काल ही बहत्तर यन्त्र लिखकर एक डब्बी मे लेकर दुकान मे रख देवे या गल्ले मे, तिजोरी मे या ताक मे रखकर नित्य पूजा कर लिया करे । इस तरह करते रहने से धन की प्राय और इज्जत, मान, सम्मान की वृद्धि होगी । सुख और सौभाग्य बढता है। इष्ट देव के स्मरण को वीनत्य, सत्य, निष्ठा धर्म नीति को नही छोडना चाहिये १ तिहत्तर दिन प्रात काल यन्त्र लिख कर डब्बी मे रख देवे यन्त्र की पूजा कर धूप, दीप, रखना, कुछ भेट भी रखना और दिन रात अखड जोत रखना ॥३१॥
सर्प भय हर अस्सीया यन्त्र ॥३२॥
इस यन्त्र का विशेष करके सर्प के उपद्रव मे काम पाता है। जब सर्प का भय उत्पन्न हा या
यन्त्र न ३२
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