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लघुविद्यानुवाद
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पढे और पचाग नमस्कार कर होम की दिव्य भस्म को लेकर ललाट वगैरह स्थानो पर लगावे, और औरो को भी देवे ॥५७।।
- शाति धारा शातिपूर्वक भक्ति से पढे । फिर पहले स्थापित कलश लघु पूण्याह वाचन कर, स्थापित जिनेन्द्र प्रभु की मूर्ति को स्वस्थान पर विराजमान करके मगल कलश को बाजे-गाजे के साथ अपने घर मे ले जावे।
। इति होम विधान ।
अथ पुन्याह वाचन ॐ स्वस्ति श्री यजमानाचार्य प्रभृति समस्त भव्यजनाना सद्धर्म श्री बलायुरारोग्यैश्वर्याभि वृद्धिरस्तु।
अद्य भगवतो महापुरूषस्य श्री मदादि ब्रह्मणो मते त्रैलोक्य मध्य मध्यासीने मध्य लोके श्री मदनावृत यक्ष स सेव्य माने, दिव्य जम्बू वृक्षोपलक्षित, जंबू द्वीपे, महनीय महामेरोदक्षिण भागे, अनादिकाल स सिद्ध भरत नाम धेय प्रविराजित षट् खण्ड मण्डित भरत क्षेत्रे, सकल शलाका पुरुष स भूति सम्बन्ध विराजितार्य खण्डे, परम धर्म समाचरण अस्मिन् देशे, अस्मिन् विनेय जनताभिरामे, ....-- ग्रामे, श्री दिगम्बर जैन मूल सघे सरस्वती गच्छे, बलात्कार गणे श्री मद् कुन्दकुन्दाम्नाये महा शाति कर्मणोचित्ते, अत्र ....... .-दिव्य महा चैत्यालये, प्रदेशे एतदव सर्पिणी कालावसाने प्रवृत्त ।सुवृत्त चतुर्दश मनूपमान्वित सकल लोक व्यवहारे, श्री वृषभ सेन सिह सेन, स्वामी पौरस्त्य मगल महापुरुष परिपत्प्रतिपादित परमोपशम पर्व क्रमे, वृषभ सेन, चारू सेनादि गणधर स्वामी निरूपित विशिष्ट धर्मोपदेशे, दुखम सुखमानतर प्रवर्तमान कलियुगा पर नाम धय दुखमाभिवान पचम काल प्रथम पाडे, महति महावीर वर्द्ध मान तीर्थकरोपदिष्ट सधर्म व्यति करे श्री गौमत स्वामी प्रतिपादित सन्मार्ग प्रवृत्त माने, श्रेणिक महा मडलेश्वर समा चरित सन्मार्गा विशेष, विक्रमाक नृपाल पालित प्रवृत मानानुकूल शक नृप काले ... ... .. वर्षसमिते, प्रवृतमान · - ...... सवत्सरे, अमुक मासे, अमुक पक्षे, अमुक तिथौ अमुक वासरे, प्रशस्त तारका योग करणद्र काण होरा मुहूर्त लग्न युक्ताया, अष्ट महा प्रातिहाय शोभित श्री मद अहत्परमेश्वर सन्निधौ श्री शारदा सन्निधौ, राजर्षि परर्षि ब्रह्मापि सन्निधौ, विद्वत्सामाज सन्निधौ, अनाधि श्रोतृ सन्निधौ, देव ब्राह्मण, सन्निधौ, सुब्राह्मण सन्निधौ, याग मडल भूमि शुद्धयर्थ, द्रव्य शुद्धयर्थं, पात्र शुद्धयर्थं, क्रिया शुद्धयर्थ, मत्र शुद्धयर्थ, महा शाति कर्म सिद्ध साधन यत्र मत्र तत्र विद्या प्रभाव स सिद्धि निमित्त विधियै म.नस्य अमुक क्रिया