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लघुविद्यानुवाद
नमः। ॐ परमनाथाय नमः। ॐ लोकाग्रनिवासने नमः । ॐ परमसिद्ध भ्य नमः । ॐ अर्हत्सिधेभ्यो नमः । ॐ केवलि सिद्ध भ्य नम. । ॐ अनन्तकृत्सिदेभ्य नमः । ॐ परपरासिद्ध भ्य नम ।
ॐ अनादिपरमसिद्धेभ्यः नमः। ॐ अनाद्यनुपमसिद्ध भ्य नमः। ॐ सम्यकदृष्टे आसन्न भव्य निर्वाणपूजाह अग्निन्द्राय स्वाहा। सेवाफलषट परम स्यान भवतु अपमृत्युनाशन भवतु ।। पीठिकामन्त्रा ।। पीठिकामन्त्ररेते षटत्रिशद्भेदभिन्न प्रतिमन्त्र त्रिवारमुच्चारितः शाल्यन्नक्षीरघृत-भक्ष्यपायस शर्करारम्भाफलैमिलितैरन्नाहूति। स्रुचा जुहुयात पुनराज्याहुतितर्पणपर्युक्षणानि ॥५॥
"ॐ सत्यजाताय नम" इत्यादि छत्तोस पीठिका मन्त्रो का हर एक का तीन तीन वार उच्चारण करे । प्रत्येक के अन्त मे, शाली, अन्न, दूध, घी, दूसरे खाने के पदार्थ, खोवा, शक्कर और केले इन सबको मिलाकर सूची के द्वारा अन्नाहूति देवे, यह भी १०८ बार हो जाती है इसके बाद जितने मन्त्र जप किया हो उसका दशास होम लवगादि द्रव्य से करे, फिर छह घृताहूति, पाच तर्पण, एक पर्युक्षण करे।
॥ अथ पूर्ण पाहूति ॥ ___ॐ तिथि देवाः पञ्चादशघा प्रसीदन्तु, नवग्रह देवा प्रत्यवापहरा भवन्तु । भावनादयो द्वात्रिश देवा इन्द्रा प्रमोदन्तु । इन्द्रादयो विश्वे दिक्पाला पालयन्तु । अग्निन्द्रामोल्य द्भवाऽप्यानि देवता प्रसन्ना भवतु । शेषा' सर्वेऽपि देवा एते राजानं विराजयन्तु सघ दातर तर्ययन्तु सघ श्लाघयन्तु वृष्टि वर्षयन्तु । विध्न विधातयन्तु मारी निवारयन्तु । ॐ ह्री नमोऽईते भगवते पूर्ण ज्वलित ज्ञानाय सम्पूर्ण फलार्ध्या पूर्णाहुति विदध्महे ।। इति पूर्णाहूतिः ॥५६।।
"अति तिथि देवा' इत्यादि मत्रो के द्वारा पूर्णाहूति देवे। पूर्णाहूति मे फल और पूजा का द्रव्य होना चाहिये । पूर्णाहूति के मन्त्र पूर्ण हो, वहा तक बराबर एक सरीखी धी की धार छोड़ता रहे ॥५६॥
तता मुकलित कर :-ॐ दर्पणो घोत ज्ञान प्रज्वलित सर्व लोक प्रकाशक भगवन्नहन् श्रद्धा मेघा प्रज्ञा बुद्धि श्रिय बल आयुष्य तेज आरोग्य सर्व शान्ति । विधेहि स्वाहा । एत पठित्वा सम्प्राय शान्ति धारा निपात्य पुष्पाजलि प्रक्षिप्य चैत्यलादि भिक्त त्रयं चतुविशति स्तवन वा पठित्वा पञ्चाग प्रणम्य तदिव्य भष्म समादाय ललाटा दौ स्वय धृत्वा अन्यानपि दधात् ।।५७।।
इसके वाद हाथ जोडकर "ॐ दर्पणो घोत" इत्यादि मन्त्र पढे, प्रार्थना करे, शान्ति धारा दे, पुष्पाजलि क्षेपण करे, चैत्यालय वगैरह की तीन भक्ति अथवा चौबीस तीर्थंकरो की स्तुति