________________
४८
लघुविद्यानुवाद
ॐ ह्रीं गमो सिद्धारणं । ॐ ह्रीं णमो अरहंतारणं ।
जब यह मन्त्र पढे, चाँचव चरण के अन्त मे "ऐ ह्री" पढता जावे, एक सफेद शुद्ध चद्दर लेकर उसके एक कोने पर यह मन्त्र पढता जावे और गाँठ देने को तरह कोणे को मोडता जावे, १०८ बार उस कोणे पर मन्त्र पढकर उसमे गाँठ देवे, वह चद्दर रोगो को उढा देवे। गाँठ शिर की तरफ रहे, रोगी का बुखार उतरे। जिसको दूसरे या चौथे दिन बुखार आता है। इससे हर प्रकार का बुखार चला जाता है। जब तक बुखार न उतरे, रोगी इम चद्दर को प्रोढे रहे।
बन्दीखाना निवारण मंत्र ॐ णमो अरसंतारणं म्ल्व्य नमः । ॐ णमो सिद्धाणं झाल्या नमः । ॐ रणमो पायरियारणं स्म्यानमः । ॐ णमो उवज्झायारणं हम्ल्या नमः । ॐ रणमो लोए सव्वसाहूरणं, म्ल्व्या नमः ।
( यहाँ नाम लेकर ) अमुकस्य बन्दिमोक्ष कुरु कुरु स्वाहा । विधि -यह प्रयोग है- जिस किसी का कोई कुटुम्बी या रिश्तेदार या मित्र जेल हवालात मे
हो जावे, उसके वास्ते उसका कुटम्बी यह प्रयोग करे । एक पाठा कागज पर श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा माँड कर ( लिखकर ) पाँच सौ फूल लेकर यह मन्त्र पढता जावे और एक फल उसके ऊपर चढाता जावे और उस पर जहाँ फल चढाया था, उस पाठे पर अगुली ठोकता जावे, ऐसे ५०० बार मन्त्र पढे । अमुक की जगह मन्त्र से उसका नाम लिया करे, जिसे बन्दो मे रखा हुआ है। इधर तो वह कार्यवाही करे, उधर उसकी अपील वगैराह जैमी कार्यवाही कानून की हो सो ही करे । बन्दीखाने मे से, कैद से फौरन छुटे । यह मन्त्र उस पाठे पर चित्राम की प्रतिमा के सम्मुख खडे होकर पढे। और खडा होकर ही फल चढावे, सब कार्य खडा होकर ही करे
इससे बन्दी मुक्त होय, स्वप्न मे शुभाशुभ कहे। नोट -यह प्रक्रिया गृहस्थ के वास्ते है, मुनि के वास्ते इसके स्मरण मात्र से ही बन्दीखाना दूर हो, अपने आप ही बन्दोखाने के किवाड खुलें और जजोर टूटे । बन्दौखाना निवारण द्वितीय मंत्र
म्हसावत्सएलो मोण।