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लघुविद्यानुवाद
ॐ णमो उवज्झायाण मुखे-यह पद मुख मे धारिए ॐ रणमो लोए सव्वसाहूण मस्तके—यह पद मस्तक मे धारिए
सर्वागे मा रक्ष रक्ष मातगिनि स्वाहा।।
यह भी रक्षा मन्त्र है। जो अङ्ग जिसके सम्मुख लिखा है, वह मन्त्र का चारण पढकरर उस अङ्ग का मन मे चिन्तवन करे, जैसे वह उस मे रखा हो ऐसा समझे । यह मन्त्र इस प्रकार १०८ बार पढे, रक्षा होगी।
' रोग निवारणमंत्र ॐ णमो अरहताण, णमो सिद्धाण, णमो आयरियाण, णमो उवज्झायाण, णमो लोए सव्वसाहूण।
ॐ णमो भगवदि सुयदेवयाणवार सग एव यण । जणणीये सररु
ॐ णमो भगवदिए सुय देव याए सव्व सुए मयाएणीय सरस्सइए सव्व वाइरिण सण वणे।
सद ए सव्ववाइणि सवणवणो।। ॐ अवतर अवतर देवी मम शरीर प्रविश पुछ तस्स पविम सव्व जणमय हरोये अरहत सिरिए परमे सरीए स्वाहा । यह मन्त्र १०८ बार लिखकर रोगी के हाथ मे रखे सर्व रोग जॉए।
मस्तक.का दर्द दूर करने का मत्र ॐ णमो अरहताण, ॐ णमो सिद्धाण, ॐ गयो आयरियाण, ॐ णमो उवज्झायाण, ॐ णमो लोए सव्वसाहूण।
ॐ णमो णाणाय, ॐ णमो दसणाय, ॐ णमो चरिताय, ॐ ह्री त्रलोक्यवश्यकरी ह्री स्वाहा । विधि -एक कटोरी मे जल लेकर यह मन्त्र उस जल पर पढकर, उस जल को जिसके मस्तक मे पीडा हो, आधाशीशी उसे पिलावे तो उसके मस्तक का सर्व रोग जाये।
ताप निवारण मत्र ॐ ह्री णमो लोए सव्वसाहूरणं ॐ ह्रीं णमो लोए उवज्झायारणं . . ., ॐ ह्री णमो पायरियारण . . .