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लघुविद्यानुवाद
करते हुए के ध्यान मे साप, शेर, बिच्छू, व्यन्तर, देव, देवी श्रादि कोई भी, विघ्न नही कर सकते। मन्त्र सिद्ध करने के समय जो देव-देवी डरावना रूप धारण कर आवेगा तो भी उस वज्रमयी कोट के अन्दर नही पा सकेगा । अगर शेर वगैरह पास से गुजरेगा तो भी आप तो उसे देख सकेगे किन्तु वह जप करने वाले को मायामय वज्र कोट की ओर होने से नही देख सकेगा, जपने वाले को अगर कोई तीर-तलवार वगेरह से घात करेगा तो उस स्थान का रक्षक देव उसको वही कील देगा। वह इस रक्षा मन्त्र को जपने वाले पर घात नहीं कर सकेगा। अनेक मुनि श्रावको के घातक इस रक्षामन्त्र के स्मरण से कोले है और उनकी रक्षा हुई है।
___ नोट -जो बगैर रक्षा मन्त्र से मन्त्र सिद्ध करने बैठते है वे या तो व्यन्तरो आदि की विक्रिया से डर कर मन्त्र जपना छोड देते है या पागल हो जाते है। इसलिए मन्त्र साधना करने से पहले रक्षा मन्त्र जप लेना चाहिए । इस मन्त्र से हाथ फेरने की क्रिया सिर्फ गहस्थ के वास्ते है । मुनि के तो मन से ही सकल्प होता है।
द्वितीय रक्षामत्र ॐ रगमो अरहताण ह्रा ह्रदय रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा ॐ णमो सिद्धाण ह्री शिरो रक्ष रक्ष हु फट् स्वाहा ॐ णमो पायरियाण हू शिखा रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा ॐ णमो उवज्भायाण ह एहि एहि भगवति वज्रकवच वज़िरिण रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा.
ॐ णमो लोए सव्वसाहूण ह्र क्षिप्र साधय साधय वजहस्ते शूलिनि, दुष्टान् रक्ष रक्ष हु फट् स्वाहा।
जब कभी अचानक कही अपने ऊपर उपद्रव आ जाए, खाते पीते सफर मे जाते, सात बैठते तो फौरन इस मन्त्र का स्मरण करे, यह मन्त्र बार वार बढना शुरू करे'. सब उपद्रव नष्ट है। जावे, उपसर्ग दूर हो, खतरे से जान माल बचे।
तृतीय रक्षामंत्र ॐ रणमो अरहताण, णमो सिद्धाण, णमो पायरियाण, णमो उवज्झायाण, णमो लाए सव्व साहण । ऐसो पच णमोकारो सव्वपावप्पणासणो। मगलाण च सव्वेसिं पढम हवई म ॐ हूं फट् स्वाहा।
चतुर्थ रक्षामत्र ॐ णमो अरहताण नाभौ-यह पद नाभि मे धारिए ॐ णमो सिद्धाण ह्रदि-यह पद हृदय मे धारिए ॐ णमो पायरियाण कण्ठे-यह पद कण्ठ मे धारिए