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लघुविद्यानुवाद
श्री पद्मावती देवी स्त्रोत यंत्र मंत्र विधि सहित वृहद काव्य नं. ६
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यत्र रचना:- - चतुर्थ दल कमल कृत्वा, तन्मध्ये ही बीज लिखेन दल मध्ये ॐ ग्रा को ही नम एतत्मन्त्र लिखेत् तदुपरि ॐ ह्री श्री क्ली महा लक्ष्मै नम लिखेत तदुपरी काव्य लिखेत प्रय प्रकारेण यत्र कृत्वा पार्श्व रक्षणीयात राज्य भयादि नश्यन्ति ।
-- प्रथम काव्यस्य ही बीज पडाक्षरै मन्त्र ॐ ग्रा को ही नम अथवा ॐ ह्री श्री क्ली महालक्ष्मै नम अनेन मन्त्रेण पूर्व दिक मुख शुक्लासन शुक्ल माला, श्रष्टोत्तर शत जाप्य कृत्वा, गुगलस्य धूप दत्वा दीप घृतस्य धृत्वा ग्राग्य कुर्यात जाति पुष्पेन जाप्य तहिराज्य भय दुष्टादि भय, अग्नि भय, नश्यति ।
इस काव्य के यन्त्र मन्त्र को पास मे रखने से व मन्त्र का १०८ बार पूर्व दिशा मे मुख करके और सफेद आसन, सफेद माला, अथवा जाई (चमेली) के फूल से गुगुल का धूप, धी का दीपक रखकर जाप करने से राज भय, दुष्टादिभय, ग्रग्नि भय आदि नाश होते है । लक्ष्मी लाभ होता है।
मन्त्र :- ॐ प्रां कों ह्रीं नमः ।
फल
श्रीमद्गीर्वाण चक्र स्फुटमुकुट तटि दिव्य माणिक्य माला
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आक्रो हीँ मन्त्र रूपे क्षपित कलिमले रक्षमा देविपझे ॥
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यन्त्र न. १
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भय निवारण यंत्र
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ज्योति ज्वाला कराला स्फुरित मुकुरिका घृष्ट पादार विन्दे
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