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लघुविद्यानुवाद
विधि नं. ३
श्लोकार्थ मन्त्र विधि न० (१) मन्त्र विधि--ॐ प्रॉ कों ह्री नम --इस मन्त्र को मच्छी यन्त्र, नागपास यन्त्र, अकुश यन्त्र मे मन्त्र की स्थापना करे, रूद्राक्ष की माला से प्रतिदिन १२१ बार मन्त्र का जाप्य करे, मच्छी यन्त्र का ध्यान करे, तो मन्त्र से हिसा दूर होय, शरीर को पाप से निवृति करे, कुष्ट आदि रोग दूर करे । और भी बाल हत्या, स्त्री हत्या, राज हत्या, जोगी हत्या, सर्व हत्या, कुटु ब हत्या, आदि दूर होय । यह यन्त्र चन्दन से मच्छो का आकार लिखकर उसमे मन्त्र स्थापन करे, और एकाग्र मन से एकान्त मे जाप करे तो. धैर्य रखे सर्व कार्य सिद्ध होगा। (व्याघ्रोरूल्का)--इस मन्त्र का जाप करे तो कष्ट आदि पेट का सर्व रोग समाप्त होता है, रूद्राक्ष की माला से जल मन्त्रीत कर पिलाने से शरीर के रोग दूर होय, नागाकुशाब्जे, इस मन्त्र से मन का विकार नष्ट होता है क्योकि यह यन्त्र पार्श्वनाथ जी के स्मरण रूप मे है, वो भगवान तो स्वर्ग और मुक्ति को देने वाले है फिर सामान्य की तो बात ही क्या, जिस जगह दैत्य, राक्षस, किन्नर, भूतप्रत, पिशाच, मुद्गल, गधर्व आदि का भय होता है तो इस यन्त्र को (प्रथम काव्य के ४ यन्त्र को) मुकुट मे रखे, याने शिर पर धारण करे तो सर्व उपद्रव नष्ट होता है। उस मन्त्रोद्धार श्लोक को द्वितीया शनिवार से आरभ करे, अन्य तिथी या वार मे प्रारभ न करे ।
यन्त्र न० १-२-३-४
श्लोक नं. १ मच्छी यंत्र नं. १ विधि नं. ३
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