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लघुविद्यानुवाद
कम हो जाती है और व्यवसाय व व्यवहार मे शोभा भी कम हो जाती है। बाहर के दुश्मन से मनुष्य सम्भल के रह सकता है किन्तु घर का दुश्मन खडा हो तो आपत्ति रूप हो जाती है। धन, वैभव, मकान मिलकियत वही दस्तरे, खत, खतुन जिसके हाथ आई हो दबा देता है। और ऐसी अवस्था हो जाने से घर की इज्जत कम हो जाती है। इस तरह की परिस्थिति हो तव इस यत्र को यक्ष कर्दम से मकान के अन्दर और खास कर पणिहारे पर और चूल्हे के पास वाली दीवार पर लिखे और अगरबत्ती या धूप सायकाल को कर दिया करे। इस तरह से इक्कीस दिन तक करे और बाद मे आपस मे फैसला करने बैठे तो कार्य निपट जायगा। साथ ही स्मरण रखना चाहिये कि न्याय नीति और कर्तव्य पूर्वक कार्य करोगे तो सफलता मिलेगी। घर की बात को बाहर नहीं फैलने देना चाहिये । इसी मे शोभा है इज्जत की रक्षा है। जो लोग स्त्रियो के कहने मे आकर भ्रातृ प्रेम कुटुम्ब स्नेह और कर्तव्य को भूल जाते है । उनका दिनमान बिगडा समझना। प्रत्येक कार्य मे इष्ट देव को न भूलना चाहिये ।।३।।
यत्र न० ३५
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पुत्र प्राप्ति गर्भ रक्षा यंत्र ॥३६॥ यह सौ का यन्त्र है और इसको पाशा पूर्ण यत्र भी कहते है। जिसको सन्तान नहीं हो या गर्भ स्थिति के बाद पूर्ण काल मे प्रसन्न होकर पहले ही गिर जाता है तो यह यत्र काम देता है। इस यन्त्र को अष्ट गध से लिखना चाहिये । अष्ट गध बनाने मे (१) केशर (२) कपूर (३) गोराचन (४) सिन्दूर (५) हीग (६) खैरसार, इन सब को बरावर लेना परन्तु केशर विशेष डालना, जिससे लिखने जैसा रस तैयार हो जायगा इतना कार्य शुद्धता पूर्वक करके भोज पत्र पर दीवाला क दिन मध्यरात्रि मे तैयार कर स्त्री गले पर या हाथ पर जहाँ ठीक मालूम हो वाव देवे । पुत्र के इच्छक हो तो पत्नि-पति दोनो को बाधना वैसे तो कर्म प्रधान है। जैसे कर्म उपार्जन किये हाग