________________
लघुविद्यानुवाद
२५३
सट्टा करने वाले पास रखकर करे तो विजय होती है । ३० (तीसा) यन्त्र से शाकिनी भय नष्ट होता है। ३२ (बत्तीसा) यन्त्र से कष्ट के समय उपयोग करने से सुख से प्रसव होता है। ३४ (चौतीसा) यन्त्र देवध्वजा पर लिखा जाय तो शुभकारक है । पर चक्र अथवा किसी के द्वारा भय प्राप्त होने वाला हो तो उसे मिटाता है। मकान के बाहर दीवार पर लिखने से पराभव नही होता। कामण टुमरण का जोर नही चलता। शाकिनी आदि पलायण हो जाती है। ४० (चालीसा) यन्त्र से सिरदर्द मिट जाता है। बैरी पावों मे गिरता है। गाव मे परगने मे मान-सम्मान बढता है। ६२ (बासठ) के यन्त्र से बन्ध्या स्त्री भी मानसम्मान गर्भ स्थिर धारण करती है। चोसठिया यन्त्र की महिमा बहत है। मार्ग मे सर्व प्रकार के भय से बच जाता है। ७२ (बहत्तरिया) यन्त्र से भूतप्रेत का भय नष्ट होता है, सग्राम मे विजय पाता है। ८५ (पिच्चासिये) यत्र से मार्ग का भय मिटना है। अट्टोत्तरिये यत्र से शिव सुख दाता सर्व कष्ट को नष्ट करने वाला है। २० (बिशोत्तर सो) यत्र बड़ा होता है जिससे प्रसव सुख रूप होता है । वेदना मिटती है । ५२ (बावन सौ) यत्र को पानी से धोकर मुख घोवे तो भाईचारा स्नेह बढता है । भाई बहिन के आपस मे प्रेम रहता है । १७० (एक सौ सत्तरिये) यत्र की महिमा बहुत है। इसका वर्णन तुच्छ बुद्धि से मनुष्य नही कर सकता। १७२ (एक सौ बहत्तरिया) यत्र से बालक को लाभ होता है, भय मिटता है । २०० (दो सौ) का यत्र दुकान के बाहर दीवार पर या मागलिक स्थापना के पास लिखने से व्यापार बढता है । ३०० (तीन सौ) के यत्र से नर नारी का 'म बढता है और टटा हा स्नेह फिर जड जाता है। ४०० के यत्र से घर मे भय नही होता। खेत पर लिखने से या लिखकर खेत मे रखने से उत्पत्ति अच्छी होती है। ५०० के यत्र से स्त्री को गर्भ धारण हो जाता है, और साथ ही पुरुष भी बाधे तो सतति योग भी होता है। बनता है। ६०० (छ. सौ) के यत्र से सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है । ७०० के यत्र बाधने से झगडे टटो मे विजय करता है । ६०० (नोसौ) के यत्र से मार्ग मे भय नही होता, तस्कर का भय मिटता है । १००० (सहस्रिये) यन्त्र से पराजय-परभव नहीं होता और विजय पाता है। ११०० (ग्यारह सौ) के यत्र से दुष्टात्मा की ओर से भय क्लेश होता हो तो वह मिट जाता है। १२०० (बारह सौ) के यत्र से बन्दीवान् मुक्त हो जाता है । १०००० (दस सहस्रिये) यत्र से बन्दीवान मुक्त हो जाता है । ५०००० -- (पचास सहस्रिये) यत्र से राज मान मिलता है, कष्ट मिटता है। इस तरह प्राचीन छन्द का भावार्थ है। इसमे बताये बहुत से यत्र हमारे सग्रह मे नही, लेकिन यत्र महिमा और उनमे होने वाले लाभ का पाना छन्द भावार्थ से समझ मे आ सकेगा। जिनको आवश्यकता हो यत्र शास्त्र के निष्णात से लाभ उठावे।