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मन्त्र
लघुविद्यानुवाद
- मेरू गिरी पर्वत जहां बसे हणमंत वीर कांख विलाई श्रंग थरण मुरड तीनु भस्मा भूक गुः ० हः० फुरोः ० ।
विधि
:-७ नमक की डली लेकर ७ बार मन्त्रित करे, २१ बार फूक दे तो काख विलाइ ठीक होती है गथैस बरो वार २१ तिणाथी मन्त्री जै तिर ७ लेई एक २ का तिणाथी वार ३ मन्त्री जे फूंक दीजै थरास से जाय । मुरड गई होय तो तेनो लोहनी कडछी की डडी बार २१ मन्त्र कर २१ बार फूक देने पर पेट दर्द, उदर शूल, धरण पीडा, वाय काख विलाई इतने रोग ठीक होते है ।
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मन्त्र :- ॐ नमो इंद्र पूत इंद्राणी हरणइ राधरणी हरणड वायसूल हरणइ हृर्षा हरणाई फीहा गोला अंतगलि वायगोला हरणइ नहीं तर इंद्र माहाराजा नी
श्राज्ञा ।
विधि :- इस मन्त्र से १०८ वार साढ़े तीन प्रॉटा की ताबा की रोग मन्त्र कर चावल से रक्त वस्त्र सवा गज कपडे को मन्त्र तो गोलो, फीहो ठीक होय ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं श्री करि, धन करि, धान्य करि, रत्न वर्षरणी, महादेव्यै, पद्मावत्यै नमः ।
विधि :- इस मन्त्र का १०८ बार नित्य ही जाप करे तो देवीजी प्रत्यक्ष हो ।
नारि केल कल्प
श्लोक - द्वि जटी एक नेत्रस्तुः नालि केरो महीतले ।
चितामरिण समोप्रोक्तं सर्व बांछित दायक ॥ १ ॥ यस्य पूजन मात्रेण समृद्धि कुरु ते सदा ।
राजद्वारे जयेप्राप्तेः लाभः प्राकस्मिक तथा ॥ २ ॥ वेशानिपूज्य मानेय दद्यात्यभीष्ट वांछित ।
प्रज्ञाल नपयध्पाना । द्वंध्याज नयतेसुतं ॥३॥ गंधाद्रानय स्यासु गूढ गर्भात ।
स्वगारेपूजितेयस्मिन् इष्टसिद्धि स्थिरा भवेत् ॥४॥ युगी तर घोरे । विवादे नृप वेनि ।
अचंयेन्नेक नेत्रंयत् । अजज्यो जायतेपुमान् ॥५॥
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