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लघुविद्यानुवाद
स्तोत्र नं. ३
श्लोक नं. १२
(१२) इस बारहवे श्लोक का दुर्भिक समय ध्यान करने से, मेघ (बादल) उमड २ कर आते है, भक्तजनो की रक्षा करते है, अमोघ वृष्टि होती है, इस श्लोक को उल्टा पढे तो शाति होती है ।।१२।।
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जिह्वाग्रे नासिकान्ते हृदि मनसि दृशोः कर्णयोर्नाभिपद्म स्कन्धेकण्ठेललाटे शिरसिच भुजयोः पृष्ठि पार्श्वप्रदेशे । सर्वाङ्गोपाङ्ग शुद्धयान्यतिशय भवनं दिव्यरूपं स्वरूपं ध्यायामः सर्वकालं प्ररणवलयगतं पार्श्वनाथेतिशब्दम् ||१३||
(१३) ॐ कार के मध्य भाग मे विराजमान, शुद्ध अतिशय सुन्दर भवन रूपी दिव्य तेजोमय स्वरूप वाले श्री पार्श्वनाथ प्रभु को मैं निरन्तर जीभ के अग्रभाग पर, नासिका के अग्रभाग पर, हृदय मे, मन और दोनो आँखो मे, नाभि कमल मे, कठ, ललाट, मस्तक, दोनो भुजा, पीठ और पूठ के अस्थि प्रदेश मे, सब अग और उपागो मे आपका ध्यान करता हूँ ॥१३॥
काव्य नं. १३
यन्त्र रचना :
अष्ट दल कमल कृत्वा मध्ये स्थाण्य, मष्टाक्षर मन्त्र ॐ ऐ द्रा ह्री झा की ह लिखेत् तदुपरि ॐ शक्ति नमः, ही शक्ति नमः, श्री शक्ति नम, क्ली शक्ति नम, चतुर्दिक लिखेत, प्रष्ट द्रव्येन च रक्त पुष्पैः यन्त्रस्य पूजन कृत्वा, एकाग्रीतेन यन्त्र, मन्त्र साधन कुर्यात, प्रस्य प्रभावेन सर्व बाछा सिद्ध भवति दिव्य दृष्टीर्भवती सर्व लोकस्य वशीकरण भवति । मन्त्र साधन विधि :
त्रयोदश काव्यस्य म्म्व्यं बीज दण्ड शक्ति चतुर्विंशति अक्षरे मन्त्र ॐ ह्री पद्मावती उपसर्गभय निवारय हा प्रो क्ली ही नमः अनेन मन्त्रेण द्वादश सहस्त्र १२००० उत्तर दिशा जाप्य कृत्वा हीरवणीस्य - होम कुर्याततर्हि विद्यासिद्धीर्भवति, चिंतित कार्यं भवति, होमस्य भस्म तथा मिष्ठान्न सहखादयेत तर्हि स्त्री पुरुष वश्य भवति ।
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