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________________ लघुविद्यानुवाद ३७४ यन्त्र नं २४७ his he he is 'he he he he he is 'he hechche the t is the he is the ichche is ह्री | ह्री ह्री 'ह्री | ह्री ह्रो ह्री | ह्री he the मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अमुकं उच्चाट्य वषट् । विधि ,-इस मन्त्र का, १० हजार जप करके दशास होम करने से सिद्ध होता है, फिर इस यन्त्र को १०८ बार लोहे की कलम से जमीन पर लिखना और पूजन करना तब जत्र मत्र सिद्ध हो जायेगा। फिर एक चिमगादड पक्षी को पकडकर लावे । उस चिमगादड के पख पर पीपल, मिरच धर का धुआ, बन्दर का विष्टा, नमक, समुद्र फेन इनका चूर्ण कर स्याही बनावे । उस • याही से यन्त्र मन्त्र लिखकर उस चिमगादड पक्षी को उडा देवे, चिमगादड जिस दिशा न उड़ेगा, उसी दिगा म शत्रु भाग जायेगा । उसका उच्चाटन हो जायेगा ॥२४७।।--- यन्त्र न २४८ ह्री ह्री ह्री अ ह्री देवत्त ये यन्त्र अष्टगन्ध से लिखकर दरवाजे के चोखट में बाँधने से बहू सासरे नही रहती हो तो रहे ॥२४॥
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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