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लघुविद्यानुवाद
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यन्त्र न० ४६
१५५ ।
१५६
१५४
१५३ । १२७
१२७
१३८
११६
१५१
१३१
१५२
१३४ ।।
११७
| १३० | १२५ । १३५ । १५६
------------- ११८ | १४१ । १४३ । १४३
१४०
१२४
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१४४
१२३
१४५
१२६ । ११६
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१४६
१४७
१२२
१२६ । १५०
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विजय यंत्र ॥५०॥
इस यत्र को विजय यत्र और वर्द्धमान पताका भी कहते है हमारे संग्रह मे इसका नाम वर्द्धमान पताका है, परन्तु इस यत्र को विजय राम यत्र समझना चाहिये क्योकि यही नाम इम यत्र के मत्र में पाया है। इस यत्र को रविवार के दिन लिम्वना चाहिये । और ऐसा भी लेब है कि रपु सडिया तारा का उदय हो तब लिखना चाहिये। जव यत्र तैयार हो जाय तब एक बाजोट पर स्थापन कर धूप दीप की जयणा सहित रखकर कुछ भेट रखकर और नीचे बताये हुये मत्र की एक माला फेरना । ।मत्र।।ॐ ही श्री वली नम विजय मत्र राज्यधार पन्य ऋद्धि वृद्धि जयं मुख सौभाग्य लक्ष्मी मम् सिद्धि कुरु २ स्वाहा ।। जिसको जैसा विधान मानम हो, उपयोग करे। उस तरह की माला फेरते पचामृत मिश्रित शुद्ध वस्तुम्रो का हवन करना भी बताया है। हम यत्र के नो विभाग बताये है प्रत्येक विभाग के अलग-२ यत्र भी है। जिसका वर्णन इन प्रकार है