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________________ २६४ लघुविद्यानुवाद (१) प्रथम विभाग के यत्र से दृष्टि दोष, डाकिनी शाकिनी, भूतप्र ेत आदि का भय नष्ट होता है । (२) दूसरे विभाग के यत्र से अधिकारी आदि को प्रसन्नता रहती है । (३) तीसरे विभाग के यत्र से अग्नि भय, सर्प का भय या उपद्रव नष्ट होता है । चौथे विभाग के यत्र से ताप एकान्तरा, तिजारी ग्रादि नष्ट होती है । पाँचवे विभाग के यत्र मे नवग्रह आदि पोडा नष्ट होती है । ( ४ ) (५) (६) छठे विभाग के यत्र से विजय पाते है । (७) सातवे विभाग के यत्र से मन्दिर आदि के दरवाजे पर लिखने से दिन-दिन मे उन्नति होती है । (८) आठवे विभाग के यत्र से धनुष आदि शस्त्र पर बाघने से विजय पाते है | (९) नवे विभाग के यत्र से दीवाली के दिन दीवार पर लिखने स जय विजय है । इस तरह से नौ विभाग के यत्रो का वर्णन है । प्रथम विभाग के ग्रक गिनती के अनुसार, प्रथम पति के मध्य का समझना, इसी तरह से दूसरा, तीसरा आदि चढते हुए को से समझना चाहिए । इस यत्र का दूसरा विभाग इस प्रकार है कि विधि सहित यत्र तैयार करके एकान्त स्थान मे शुद्ध भूमि बनाकर कुम्भ स्थापना कर अखण्ड ज्योत रखे और चोकोर पाटे पर नन्दी वर्धन साथिया करे । चावल सवा सेर, देशी तेल के केसर से रंगे हुये अखण्ड हो, उनसे साथिया कर फल नेवेद्य और रुपया, नारियल चढावे फिर सामने बैठकर साढ़े बारह हजार जाप यत्र के सामने पूरे करले । वे नियमित जाप की सख्या प्रतिदिन एक सी हो इस तरह से विभाग कर जाप पाच दिन अथवा आठ दिन मे पूरा कर लेवे । जाप करने के दिनो मे चढने से पहले पूजा कर लेवे । भूमि शयन ब्रह्मचर्य पालन और आरम्भ का त्याग कर नित्य स्थापना कर स्थान मे ही करे । जिस दिन जाप पूरे हो जाय साथिया मे से चावल चूटि भर कर लेवे । और सिरहाने रखकर एक माला यन्त्र की फेर कर सो जावे । रात्रि के समय स्वप्न मे शुभा शुभ कथन देव द्वारा मालूम होगे और धन वृद्ध होगी । कार्य सिद्ध होगा । आशा श्रद्धा से और पुण्य फलती है । पुण्य, धर्म साधन से उपार्जित होता है । इसका पूरा ख्याल करे | ॥५०॥ से
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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