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मन्त्र : - हिमगिरि पर्वतु त हांथि तु पवणू उच्छनि लइ नींव की लकड़ी डालइ हिमगिरि पर्व ए वोल जतु प्रमारण न करहीतर ग्रादीश्वर
विधि :- नीव की लकडी हाथ मे पकड कर रोगी के मा तो असणी पात वार येत् । नदी मध्ये पूर्वोक्त मन्त्रित वासान्निक्षिप्त ततस्त छिरस ही कार्य स्व हस्त कृत्वा ही कार मेक विशतिवारान्
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रर्ह स्वों क्रीं ची श्रीं प्री सर्व संपू वले महाशक्ते क्षां क्षी क्षू मां रक्ष रक्ष स्वाहा ।
विधि
मन्त्र
-इस महा मन्त्र को प्रभात के समय मे २१ वार होते है | श्रेयश्चकर होता है ।
मन्त्र :- ॐ ह्रो अर्हं नमि ऊरण पास बिसहर वसह त्रिण है. ( इति मूल मंत्र )
मन्त्र
विधि
- ॐ ह्रीं श्रीं क्ली कलि कुण्ड स्वामिनि श्रपराजिते नंभे ।
विधि :- उपदेश के समय जप कर उपदेश करने से श्रोताजन म्रा रहा है तो भी इस मन्त्र का ३ दिन तक ज का स्थन करता है और मनुष्यो को वश मे करन १०८ स्मर्यते तत ऊर्द्ध' वार २१ चित्राण ) ।
.-- ॐ ह्री धरणेन्द्राय नमः ॐ ह्रीं सर्व विद्या - इस मन्त्र को ६ महीने तक निरन्तर १०८ बार २१ बार जपने से सर्प जाति का भय नही होता है. आगइ वार १०८ स्मर्यते ।
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मन्त्र :- ॐ ह्रों पंचाली २ जोइ मंविज्जं क
सज्जइत्ति स्वाहा ।
विधि - वार २९ गुणियित्वा सुप्यते ।
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