________________
११२
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र .-ॐ ह्रीं चामुंडे वज्रपाणे हुं फट् ठः ठः । विधि -गुप्ति मोक्ष विषये मासु १ सहस्त्र उभय सध्य गुणनीयः ग्रह विग्रहा दौच । मन्त्र :-ॐ सरल विषात् सिरकती नाशय नाशय अर्द्ध शिरोतों सिरकती स्थाने
अर्द्ध सिरकति । विधि .-आदित्य शुक्र वारयोरिम अर्द्ध वट्टिकाया लिखित्वा कुमारी सूत्रेण वेष्टियित्वा पक्का ऽक्षर
सयुक्त मर्द्ध श्रुनोदीयते अन्यदद्ध शिरोतिमान् भक्षयति । मन्त्र :-ॐ इलवियक्ष ॐ सिलवियक्ष । विधि -इस मन्त्र से लोहे की कील ७ वार मन्त्रित करके पूर्वाभिमुख लकडी के खम्भे मे ठोके,
स्वय पश्चमाभिमुखेन् दाढ रोगिण सकाशात् कीलिका खोटन च पानाय्यते स्तोक निक्षिप्य पुनर्वार ७ जपित्वा निक्षिप्यते पुनर्वार ७ सकलानिक्षिप्यते तत्पाद्धिस्तु १ परिहार्यते ।
इस प्रकार करने से दाढ पीड़ा नष्ट होती है । मन्त्र :-ॐ ः ॐ ह्रथु जंभे ॐ ह्र. स्तभे ॐ ह्र सूअंधे
ॐ ह्रथू मोहे। विधि :-इस मन्त्र को कपडे पर लिखकर धारण करना चाहिये। (इमवहि का पट्टे लिखित्वा
पावधाऱ्या)। मन्त्र :-ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय हुं फट् ॐ ह्रां ह्री ह ह ह्रौ ह्रः। विधि :-इस मन्त्र को पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा के सामने १०८ बार जपने से वेला ज्वर का नाश
होता है। मन्त्र .-ॐ चंडि के चक्रपाणे हुं फट् स्वाहा । विधि :-(इसकी विधि उपलब्ध नहीं हो सकी है।) मन्त्र :- ॐ नमो भगवतो पार्श्व चंद्राय गौरी गांधारी सर्ववशंकरी स्वाहा ।
ॐ नमो सुमति मुख मंडये स्वाहा । विधि :-आभ्यापृथक वार १०८ मुखभामिमन्त्र वाम हस्तेनवादा दी गम्यते । मन्त्र .- ॐ ह्रीं अछुप्ते मम श्रियं कुर कुरु स्वाहा ह्रीं मम दुष्ट वातादि रोगान्
सर्वोपद्रवान वृहतो नु भावात् ठः ३ मक्षिका फुसिका गुरुपादुके अमृतं भयं ठः ३ स्वाहा।