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लघुविद्यानुवाद
विधि :-इस मत्र से भी सिर पीडा दूर होती है। मन्त्र :-पारे पारे समुद्रस्य त्रिकुटा नाम राक्षसी तस्याः किली २ शब्देन अमुकस्य
चक्षु रोगं प्रणश्यति । विधि -इस मन्त्र से सप्तवड लाल डोरे को ७ गाठ देकर वाम कान पर डोरे को बांधने से चक्षु
पीडा दूर होती है। मन्त्र :-ॐ अंषि जले जलं धरे अन्धा वंधा कोडी देव पुत्रारे हिमवंतसारी । विधि :-इस मन्त्र से २१ वार प्रारनाल जल मत्रित करके चक्षु धोने से पीडा मिटती है । मन्त्र :---ॐ कालि कालि महाकालि महाकालि रोद्री पिंगल लोचनी श्रु लेन रौद्रोप
शाम्यंते ॐ ठः ठः स्वाहा । विधि -बार ७ घरट्रपूट लहणक वस्त्र दोरडउ यदि वामी तदा दक्षिणो करें यदि दक्षिणा तदा
वामे वध्यते । मन्त्र :-ॐ ह्री पद्म पुष्पाय महापद्म पुष्पाय ठः ठः स्वाहा । विधि -वार २१ हस्तो वाह्यते चक्षुषोभरण निवृति क्रियते । मन्त्र :-ॐ विष्णु रूपं महारूपं ब्रह्मरूपं महागुरु शंकर प्रणिपादेयं अक्षि रोग मा ह
ह रौ ह ह हिरंतु स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से पानी २१ वार मन्त्रित करके जल छिडके तो चक्षु पीडा शात होती है। मन्त्र -ॐ क्षि क्षि प क्षं हं सः। विधि :-भस्म मत्रित करके आँख पर लगावे तो चक्षु पीडा शात होती है । मन्त्र :-रे प्राकस हरणाक प्रादित्य पुत्र थलि उप्पन्नउ खमणिया दारी उत्तर हि कि
उत्तारउ कि छालियाह क्वावार तु । (अवर्कोतारण मन्त्र) मन्त्र -ॐ भूर भूर भूः स्वाहा । (खजूरा मन्त्र) मन्त्र -ॐ भूरु भूरु स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को २१ बार पढकर हाथ से झाडा दे तो खजूरा विप शात होता है। कपिथ
वटिका पानीयेन घर्षित्वा डके दीयते खजूरो विषोपशम । मन्त्र :-डू कु कुरु वंभणुराउ पंचय मिलहि तिपव्वय घाउ । विधि -इस मन्त्र से मिट्टी को मन्त्रित करके घोडे के काटे हये पर डालने से और हाथ से झाडा
देने से अच्छा हो जाता है।