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लघुविद्यानुवाद
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ज्वरं, रेवतो ग्रहज्वरं, दुर्गाग्रह ज्वरं, किकिरणो ग्रह ज्वरं त्रासय त्रासय नासय नासय छेदय २ भेदय २ हन २ दह २ पच २ क्षोभय २ पार्श्वचंद्रायज्ञापयति
सर्वभय रक्षिणी ।।२।। विधि ---इस मत्र को पढने से सर्व प्रकार के ज्वर का नाश होता है। हरण होता है। दोनो
मत्रो को पढना चाहिये । १ मन्त्र :-ऐ ह्रीं क्लीं ब्लू ां को श्रीं क्लों म्लों ग्लें सर्वाग सुदरी क्षोभी २
क्षोभय २ सर्वाग त्रासय २ हुं फट् स्वाहा ।
इस विद्या का नित्य ही स्मरण करने से दुष्ट रोगो का नाश होता है। (१) ह्री कार मे देवदत्त गभित करके, ऊपर चार दलो का कमल वनावे, उन चारो दलो मे
क्रमश. पार्श्वनाथ लिखे, ऊपर एक वलय मे हर २ लिखे, फिर ऊपर एक वलय और बनावे, उस वलय मे ह हा हि ही हु हु हे है हो हो ह ह लिखे ऊपर एक वलय और बनावे उस वलय मे क ख ग घ ड इत्यादि क्ष कार प्रर्यत लिखे, ऊपर भुजग पद लिखना। देखे
यन्त्र न० १ विधि :-इस यन्त्र को केशर गोरोचन से भोजपत्र पर लिखकर, कन्या के हाथ से कता हवा सूत्र से
वेष्टीत करके, अपने हाथ मे धारण करे तो वह पुरुष स्वजन वल्लभा होता है। जिसको पुत्र नही वह पुत्र प्राप्त कर सकता है। निर्धनो को धन प्राप्त होता है। यन्त्र के धारण मात्र से हा दुर्भगा, सुभगा होता है। विप का असर नही होता है। भूत, प्रेत पिटक, आदि कभी भी असर नही करता है। स्मरण मात्र से नाना प्रकार के पाप नष्ट होता है।
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मंत्र पाठान्तर :- ॐ नमो भगवति पद्मावति सप्तफरणाविभूषिता चतुर्दश दंष्ट्राकराला च नर २ रम २ फुरू २ एकाहिक, द्वयाहिक, व्याहिकं चाथिक ज्वरं, अर्थज्वरं, भूतज्वरं, मासिकं, संवत्स रज्वरं, पिशाचज्वरं, वेलाज्वरं, मूर्तज्वरं. सर्वज्वरं, विषमज्वरं, प्रतज्वरं, भूतज्वरं, ग्रहज्वरं, राक्षसग्रहज्वरं, महाज्वरं, रेवतीज्वरं, ग्रहज्वरं, दुर्गाग्रहज्वर, किङ्किणीग्रहज्वरं, त्रासय २ नाशय २ छेदय २ भेदय २ हन २ दह २ पच २ क्षोभय २ पार्श्वचन्द्र प्राज्ञापयति । ॐ ह्री ही पद्मावति पागच्छ २ ही है स्वाहा । इन दो मन्त्रो को सिद्ध करने से सर्व प्रकार का ज्वर उतार सकते है।