SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 531
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७० लघुविद्यानुवाद दातव्या। एतद्यन्त्र कु कम गोरोचनया भूर्ये सलिख्य कुमारी सूत्रेण वेष्टय । निजभुजे धारयेत् । य पुरुष. स. स्वजनवल्लभो भवति । श्रीमान्अपुत्रो लभते पुत्रं निदवो जीवितप्रजाः । यंत्रधारणमात्रेण दुर्भगा सुभगा भवेत् ॥१॥ प्रभवंति विषं न सूतं सनिहांती चेटिकाश्चभूताश्च । संस्मरणादस्य स्तुत्यां पारमार्यविनाशमुपयांति ॥२॥ द्वितीय--हुकार नामभितस्य बहि क्षकार वेष्ट्य । बहि पोडशदलेषु स्वरा. दातव्या.। बाह्य षोडशदलेषु--"ऐ ह्रा ह्री द्रा द्री वली क्ष 'लु प्ली ह्रा ह्रौ ह्र ह्री ह्रठठ ।"-आलिस्य बाह्यदलाने ॐ कार ह्री कार दातव्य । एतद्यन्त्र कु कुमगोरोचनया भूर्यपत्रे सलिख्य कुमारीकर्तितसूत्रेण वेष्टय मुच्यते । भीमैकघोरे प्रतीतनादप्रल्हादे । कीदृशे-पळे, पद्मावती देविइति सवध. । पुनरपि कीदृशे । देवेद्रवद्ये । देवताना इन्द्रा । देवेद्रास्तैर्बद्या वन्दनीया देवेन्द्रवद्यास्तस्या सबोधन देवेन्द्रवद्ये ॥६॥ श्लोक नं. ६ का अर्थ (६) लीला से सहित चसल नीलकमल के समान नेत्र वाली, बडवानल की अग्नि के समान लाल रंग के समान भयकर वज्र को हाथ मे धारण करने वाली, ह्रा ह्री ह्र ह्र, इन चार अक्षर वाले बीज मत्र से जगत प्राणि मात्र का भयकर उपसर्ग दूर करने वाली (नाश) कमल के आसन पर विराजमान देवेन्द्रो से वन्दित हे पद्मावति देवि मेरी रक्षा करो ॥६॥ श्लोक नं. ६ के यन्त्र मन्त्र मन्त्र :-ॐ नमो भगवती, अवलोकित पद्मिनी ह्रां ह्र ही हहः वरागिनी चितित पदार्थ साधनी दुष्ट लोकोच्चाटनी सर्वभूत वश्यं करी, ॐ को ही पद्मावती स्वाहा। ॐ नमो भगवती पद्मावती सप्तस्पट विभषिता, चतुर्दश दष्टा कराला (च) नरः २ रमः २ फुरः २ एकाहिक, द्वयहिक, · त्र्यहिक, चतुर्थ्यहिकं ज्वर, चातुर्मासिकं ज्वरं, अर्द्ध मासिकं ज्वरं, संवत्सरं ज्वरं, पिशाच ज्वरं, मूर्त ज्वर, सर्व ज्वरं, विषम ज्वरं, प्रतज्वरं, भूत ज्वरं, ग्रह ज्वरं, राक्षसग्रह ज्वर, महा
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy