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लघुविद्यानुवाद
यत्र न० ७६
इस यत्र को केवडे के रस से लिख कर, सिरहाने रखकर सोने से स्वप्न मे भूत ही भूत दिखाई पडते है ॥७६॥
यत्र न० ७७
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७६
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इस यत्र को लाख के पानी से थूहर के पत्ते पर लिखकर, बगीचे में गाड़ देने से अधिक फूल आते है ।।७।।