________________
६७८
लघुविद्यानुवाद
श्याम वर्ण ह्रीं के ध्यान का फल
अर्थ
यश्यामलं कज्जलमेचकाभ, त्वां वी क्षतेवा तुष धम धुम्रम् । विपक्ष पक्षः खलु तस्यवाता, हतऽभ्रवद्या त्यचिरेरण नाशम् ॥७॥ --जो साधक ही कार मायावीज को काला काजल के समान श्याम वर्ण रूप अथवा छिलके के धुश्रा के समान ध्यान करता है उसके शत्रु समूह क्षण भर मे नाश को प्राप्त हो जाते है। जैसे पवन से मेघ विखर जाते है। नि सन्देह शत्रु को मरण प्राप्त वरा देता है। और नील वर्ण का (ही) तुम्हारा ध्यान करने स विद्वषण और उचाटन करता है ।।७॥
कुडली स्वरूप ह्रीं के ध्यान का स्वरूप
श्राधार कन्दोद्गत तन्तु सूक्ष्म लक्ष्यद्भवं ब्रह्म सरोज वासम् ।
योध्यायति त्वां स्त्रंव बिन्दु बिम्बा मृतं स च स्यात् कवि सर्व भौमः ॥८॥ अर्थ :-जो मूलधार कन्द मे से निकलता हुआ तन्तु के समान सूक्ष्म सुषुम्ना नाड़ी मे रहने वाले
लक्ष्यो (चक्रो) को भेद कर ऊपर जाता हुआ अन्त मे सहस्रार कमल मे रह स्थिर होकर वहा चन्द्रमा के बिम्ब के समान अमृत झर रहा हो ऐसा ही कार माया बीज का ध्यान करता है वह साधक कवियो मे श्रेष्ठ चक्रवति होता है ।।८।। फल श्रति षड् दर्शनि स्व स्व मतावलेपः, स्वे देवते त (त्व) न्मय बीज मेव । व्यात्वा तदाराधन वैभवेन, भवेद जेयः परिवारि वन्दैः ॥६॥ -षड्दर्शन के जानकार अपने-अपने इष्ट देवता ह्री कार बीज का ध्यान करके वे
आराधना के वैभव से प्रविष्ट होकर वादियो के समूह से अजेय बन जाते है। ऐसा इस माया बीज का अतिशय है। कि मन्त्रयन्त्रविविधागमोक्तैः । दुःसाध्यसं शीतिफला ल्पत्गर्भ ॥ सुसेव्यः वः ( सद्यसुसेव्य ) फलचिन्तितार्थाधिकप्रदश्चसिचेत्वमेकः ॥१०॥
अर्थ