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अर्थ
लघुविद्यानुवाद
अर्थ
माया बीज ही कार को कौन-कौन कार्य के लिये किस-किस वर्ण का ध्यान करना चाहिये सो कहते है । ( 'सफेद रंग का ह्री' का ध्यान करने का फल 1 त्वचिन्तयन् श्वेत करानुकारं, जोत्स्नामयों पश्यतियस्त्रि लोकोत्मा । (म ) श्रयन्ति तंतत्क्षणतोऽनवद्य विद्या कला शान्तिक पौष्टि कानि ||४|| - चन्द्रमा के समान उज्ज्वल ही का ध्यान करने वाले को सर्व विश्वाए, सर्व कलाए और शातिक पौष्टिक कर्म तत्क्षण सिद्ध हो जाते है । जो ह्री को तीनो लोक मे प्रकाशमान होता हुआ ध्यान करता है और शुक्लवर्ण का ध्यान करता है उसकी विपत्ति का नाश होता है । अनेक रोगो का नाश, लक्ष्मी और सौभाग्य की प्राप्ति, बन्धन से मुक्ति, नये काव्य की रचना शक्ति प्राप्त होती है । नगर मे क्षोभ पैदा करना व सभा मे क्षोभ पदा करने की शक्ति और आज्ञा ऐश्वर्यफल की प्राप्ति होती है ||
अर्थ
रक्त ह्रीं कार के ध्यान का फल
त्वामेव बाला रुरगडमण्ड लाभं स्मृत्वा जगत् त्वत्कर जाल प्रदीपम् । विलोक तेयः किल तस्य विश्वं विश्वं भवेदवश्यम वश्यमेव ॥ ५ ॥
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- हे ही कार तुम उदित हुए बाल सूर्य की कान्ति के समान अरुण हो । आापके अरुण मण्डल मे सारा ससार विहिन है । जो इस रूप मे आपका ध्यान करता है उसके वश मे समस्त ससार प्रवश्य हो जाता है । अन्य प्राचार्यो के मतानुसार लाल वर्ण के हा कार का ध्यान करने से सम्मोहन, आवर्षण और प्रक्षोभ भी होता है ||५|| स्त्री आकर्षण के लिए मध्य मे ध्यान करना ।
पीतवरण ह्रीं कार के ध्यान का फल
यस्तप्तचामी कर चारु दीपं, पिङ्ग प्रभं त्वां कलयेत् समन्तात् । सदा मुदा तस्य गृहे सहल, करोतिकेलि कमला चलाऽपि ॥६॥
- जो पीले कान्ति सहित तुमको तप्त सुवर्ण के समान सुन्दर सर्वत्र प्रकाशमान ध्यान करता है उसके घर मे चलायमान लक्ष्मी भी प्रानन्द और लीला सहित कोड़ा करती है । वह स्तम्भन कार्य और शत्रु के मुख बन्धन मे उत्तम कार्य करता है || ६ ||