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________________ ६७६ लघुविद्यानुवाद अर्थ अर्थ ~जिसके पार्श्व मे (स) वर्ण है (ऐसा, 'ह') 'ल' और 'य' के मध्य मे सिद्ध विराजमान है । ऐसा, 'र' उसके अन्दर 'इ' स्वर है जिसको कान्ति दैदिप्यमान सूर्य के जैसी है, और जो अर्थ चन्द्र (कत) विन्दु और स्पष्ट नाद से शोभा पा रहा है। ऐसा यह शक्ति बीज है। मै तुमको उल्लासपूर्वक मन मे भाव मूवक स्तुति करता हू नमन करता हू ।।१।। ह्रीं कार मेकाक्षर मादि रूपं, मायाक्षरं कामद मादि मंत्रम् । त्रैलोक्य वर्ण परमेष्ठि बीज, विज्ञाः स्तुवन्तीशभवन्त मित्यम् ॥२॥ -हे ईश ह्री कार आपकी विद्वान पुरुष ह्री कार, एकाक्षरी, आदि रूप मायाक्षर कामद, आदि मन्त्र, त्रैलोक्य वर्ण और परमेष्टि बीज, ऐसे विशेपणो से स्तुति करते हैं ।।२।। शिष्यः सुशिक्षा सु गुरोर वाप्य, शुचिर्वशी धीर मनाश्च मौनी । तदात्म बीजस्य तनोतु जाप मुपांशु नित्यं विधिना विधिज्ञः ॥३॥ -सद्गुरु के पास पूर्ण प्राज्ञा प्राप्त करके, विधि को जानने वाले शिष्य को पवित्र होकर, सर्व इन्द्रियो को वश मे कर पूर्ण रूप से, मन मे धैर्य धारण कर, मौन रखकर इस आत्म बीज ही कार का विधियुक्त उपाश जाप नित्य करना चाहिए ॥३॥ अर्थ विशेष -ह्री कार के जाप व ध्यान करने वाले को प्रथम गुरु से आज्ञा प्राप्त करनी चाहिए। फिर स्वय पूर्णरूपेण शुद्ध होकर धैर्यपूर्वक इन्द्रियो को वश मे करता हुआ मौन से उपाशु जाप करे। जाप करने के पहले सकलीकरण करना परम आवश्यक ह । यहा उपाशु जाप का अर्थ है कि बिना वोले मन्त्र पढना, जिसमे होठ हिलते रहे । जाप १ लक्ष करना चाहिये । जाप करने का स्थान श्वेत खडी से रगा हुआ मकान हो, सफेद ही कपडा हो, सफेद ही अन्न का भोजन करे, सफेद ही माला हो, जाप करने वाले को अपने शरीर मे सफेद चन्दन का विलेपन करना चाहिये । पक्ष भी शुक्ल हो, पहले एक ताम्रपत्र अथवा सोना, चादी या कासे के ऊपर ही कार खुदवा ले, फिर ह्री कार यत्र का पचामृत अभिषेक करके, उत्तमोत्तम अष्ट द्रव्यो' से पूजा करे, फिर ॐ ह्री नम की आराधना शुरू करे । जाप करने वाले को एकासन अथवा उपवास करना जरूरी है । उपवास कृष्णपक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी को करके विद्या पाराधना करे, शुक्ल पक्ष मे भी कर सकते है। षट्कर्मो के लिये कोष्ठक को देख लेवे । उपवास करने वाले साधक को दस हजार जाप से भी विद्या सिद्ध हो जाती है। विद्या सिद्ध हो जाने के बाद इस
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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