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________________ १५० लघुविद्यानुवाद ही क्या, अब आगे वाली विद्या का तीन बार उच्चारण करे। णमो अरि हतारण गमो सिद्धाण गमो आगासगामिरिगण । ॐ नम .- अव पच अग न्यास करके विचक्षण बुद्धि वाला कार्य प्रारम्भ करे। पचाग न्यास विधि . ॐ अरहताण नमः हृदय । हृदय को हाथ लगावे।ॐ सिद्धारण नम शिरः। ऐसा कहकर सिर का स्पर्श करे । ॐ प्राचार्याणा नम: शिखा। शिखा का स्पर्श करे। ॐ उपाध्यायाना नम कवच । ऐसा कहकर कवच धारण करे। ॐ लोके सर्व साधुना नम अस्त्र । ऐसा विचार करके अस्त्र धारण करे। इस सकलीकरण को सुर, इन्द्र भी भेदन करने मे असमर्थ है, फिर अन्य की तो बात ही क्या है। सुरा सुरेन्द्राणा अस्त्र विसर्ग युक्त त्रासकर सर्व दुष्टाना । इस प्रकार अग न्यास विधि करके आदि प्रभु की प्रतिमा के के सामने या अन्य तीर्थकर की प्रतिमा के सामने यथा शक्ति पूजा करके मन्त्र का जाप प्रारम्भ करे। मन्त्र -सवाय नमो भगवतो ऋषभाय नमो गुरु पादेभ्यो हदु हदु कल कल सिमि सिमि गृह्न २ २ शीघ्र कुरु कुरु सुरु सुरु मुरु २ वध २ दह २ छिद छिंद प्युभ २ वीर २ भज २ महावीर महावीर ग्रस २ मर्द २ हे है हे घु घू मे३ वुघर हस ३ केलि ३ महाकेलि ठः फट २ फुरु फुरु सर्वग्रहान धुनु महासत्व वज्रपाणि दुर्दाताना दमक चर ३ कक यथा नुशास्तोस्ति भगवता ऋषभदेवेन तथा प्रति प्रद्य इद ग्रह ग्रह सुवज्र मूर्द्धान् फालय महा वन्त्राधिपति सर्व भूताधिपति वज्र मेरवल वज्र काल हु २ रौतु २ जयति वज्र पाणिर्महावल दुर्द्ध र दुर्द्धर क्रोध चण्ड धुरु २ धावे २ ही ह्व हो ह ह ह्वाक्षा क्षा हो ही क्षी क्षी है २ क्षु २'क्ष २ क्ष. सोध र्माधिपति ऋषभ स्वामिराज्ञापयति स्वाहा। विधि :-यह पठित सिद्ध मन्त्र है, केवल पुष्पो से जप करना चाहिये, तब सिद्ध हो जाता है । चाहे गृह से गहित हो, चाहे अगह से हो, सबको सिद्ध हो जाता है। इस मन्त्र को पढने से गहित व्यक्ति को आवेश पाता है, छोड देता है, हसाता है, गवाता है, जिसको कि इन रोगों से ग्रसीत हो । अनंत, वासुकि, तक्षक कर्केटिक, पद्म, महापद्म, शखपाल, कुलिक, महानाग, इत्यादिको के काट लेने पर आवेश मे पाते है, शोघ्र ही जहर उतर जाता है। तीन लोक मे जो काल कुट विष है उसका भी असर नही रहता, फिर सर्प के जहर की तो क्या कथा । इस प्रकार पूज्यपादाचार्य का वाक्य है यहा किसी भी प्रकार का शका नही करनी चाहिये। और पवन ज्वर. डाकिनी, शाकिनी, भत, 'प्रेत, राक्षस, व्यंतर, गर्दभ, लूता (मकडी विषा) दिक को मष्ट करता है, कितने ही दुष्ट क्यो न हो (पूजपादाचार्य कृत भूत तत्र समाप्ता.) मन्त्र :-ॐ कुरु कुल्ले ह्रीं ठः ठः स्वाहा । विधि -इस मन्त्र का पहले ३० हजार जाप करे, तब मन्त्र सिद्ध होता है। प्रतिदिन रात्रि में वलि देकर नैवेद्य की ओर जपे, फिर इस मन्त्र से वस्त्रॉचल को १०८ बार मान
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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