________________
श्री १०५ क्षुल्लक चैत्यसागरजी महाराज
R
ec..my
NA
का
मंगलमय शुभाशीर्वाद मुझे यह जानकर अत्यन्त हर्ष है, कि परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थुसागरजी महाराज ने बहुत अल्प समय मे जैन समाज के लिए अद्भुत देन को बहुत हो परिश्रम के साथ लघुविद्यानुवाद ग्रथ का पुन. सशोधन किया। इसके लिए मेरी भावना थी कि इसका पुन प्रकाशन होना चाहिए। क्योकि आज समाज मे इसकी बहुत ही आवश्यकता है। इसके पहले लघुविद्यानुवाद ग्रथ के प्रथम सस्करण का विमोचन बाहुबलि सहस्त्राभिषेक महोत्सव के शुभावसर पर श्रवण बेलगोल मे सन् १९८१ मे भारत के महान प्राचार्यों के सानिध्य मे परम पूज्य श्री १०८ प्राचार्य देश भूषण जी महाराज, परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्य विमलसागरजी महाराज, परमपूज्य श्री १०८ एलाचार्य विद्यानन्दजी महाराज, परमपूज्य श्री १०८ दयासागरजी महाराज परमपूज्य श्री १०८ सुबाहुसागरजी महाराज एव श्री १०५ ग० प्रा० विजयामती माताजी एव अन्य (२५० पीछी त्यागी वृत्ति) विद्वानो के सानिध्य मे हुवा था। जिसकी जैन समाज मे बहुत ही जोर शोर से इसको चर्चाये हुई। परिणाम स्वरूप ग्रथमाला के पास आज लघविद्यानवाद की ग्रथ की प्रतिया उपलब्ध नही है। इस ग्रथ की माग आज जैन समाज मे ही नही अन्य लोगो मे भी अत्यधिक है।
जैन समाज मे कुछ विद्वानो ने इसकी बहुत ही आलोचना की है। इसमे बहुत ही घिनौने यत्र, मंत्र तत्र आदि दिये हैं। इसमें वशीकरण, मोहनी, आर्कषण, पौष्टिक, मारण