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लघुविद्यानुवाद
माला मत्र (यहाँ नहीं लिखा है मूल सस्कृत टीका मे दिया है) इस माला मत्र को पठित सिद्ध मत्र कहते है। इस मत्र को सिद्ध नही करना पडता है । नित्य ही पढने मात्र से सिद्ध होता है । नित्य ही पाठ मात्र करने से भूत ग्रह ब्रह्म राक्षस, बेताल प्रभृति, शाकिनी ज्वर रोग चोरारि मारी का निग्रह होता है । व्याल, सर्प, वृच्छिक
मूषक लता, पातक आदि शिरोरोग का नाश होता है। मन्त्र -ॐ भगी रेटी किरेटी जंभय २ क्ली पय २ धत टं के स्वाहाः ॥
ॐ नमो भगवतो काली महाकालि चंडाली अमुकस्य रुधिर पितर २ सुहृदये भित्वा हिलि २ चंडालनी मातंगिनी स्वाहा ॥ ॐ नमो भगवती काली महाकाली रुद्र काली नमोस्तुते हन २ दह २ छिद २ ।
छेदय २ भेदय २ त्रिशूलेन (हुं) हः २ स्वाहा । विधि -इन तीनो ही मत्रो को सात बार पढ कर पानी पिलावे तो शूल का नाश होता है। मन्त्र :--ॐ नमो भगवती कराली महाकराली ॐ (ह्रीं नमो) महामोहसंमोहनीयं
महाविद्य जंभय २ स्तंभय २ मोहय २ म(धं)च्चय २ क्लेदय २ आकर्षय २ पातय २ नरेसंमोहिनी ऐ द्री भी ह्रौ प्रागच्छ कराली स्वाहा ।
माला मन्त्र का पाठान्तर भेद ॐ नमो पार्श्वनाथाय धरणेद्र सहिताय पद्मावती सहिताय, सर्वलोक हृदयानन्दकारिणी भृङ्गीदेवी, सर्व सिद्धविद्याविधायिनी कालिका, सर्वविद्या मन्त्र यन्त्र मुद्रास्फोटनी कराली, सर्वपरद्रव्ययोगचूर्णमथनी चडी, सर्वविषप्रमदिनी चामुडी देवि | अजिताया स्वकृत विद्या मन्त्र तन्त्रयोग चूर्णरक्षणा जम्भा परसैन्यमदिनी नमो दानन्द (?) रोगनाशिनी सकल त्रिभुवनानन्दकारिणी भृङ्गोदेवी, सर्वसिद्धा विद्या विधायिनी महामोहिनी ! रैलोक्य सहारिणी चामुण्डा, ॐ नमो भगवती पद्मावती सर्वग्रह निवारिणी फट २ कप २ शीघ्र चालय २ बाहु चालय २ गात्र चालय २ पाद चालय २ विङ्ग चालय २ लालय २ धनु ३ कम्पय २ कम्पावय २ सर्वदुष्ट विनाशय सर्वरोग विनाशय जये विजये अजिते अपराजिते जम्भे मोहे अजिते ही २ हन २ दह २ पच २ धम २ चल २ चालय २ आकर्पय २ आकम्पय २ विकम्पय २ क्षम्यं क्षा क्षी शू क्षौ क्षः हु फट् ३ निग्रह ताडय २ क्म्यं स्रा स्री हू को क्ष रह २ सः २ घ २ स २ भ्व्यं हू २ घर पर २ हु फट ३ शङ्खमुद्रया घर टम्ल्यू पुर हु फट् कठोरमुद्रया मारय २ ग्राहय २ म्ल्व्यू हर स्वस्तिक