SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 516
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५२ लघुविद्यानुवाद नेत्राय वषट् । क्षौ कर्णाय वषट् । क्ष नेत्राय स्वाहा । क्ष अन्धाय स्वाहा । ददशदिशाना रक्षा करोति ।। __ ॐ ह्री बाहुबली लम्ब वाहु क्षा क्षी क्ष क्षौ क्षे क्षत्रुर्द्ध पुज कुरू कुरू शुभाशुभ कथय स्वाहा ॥२॥ एतन्मंत्रं कर जापेन दश सहस्त्राणि (१०,०००) सिद्धिर्भवति । ॐ कट विकट कटे कटि धारिणी ठ ठ परिस्फुटवादिनी भज २ मोहय २ स्तभय २ वादी मुख प्रति शल्यमुख कीलय २ पुरय २ भवेत् + + + अमुकस्य जयम् ।।२।। एपा विद्या व्यवहारकाले स्मर्यमाणा वादिमुख स्तम्भयति । विजय प्रयच्छति ।।२।। अवश्यप्लवा सदा कटकारि वृक्षाणा अष्ट सहस्त्र (८०००) जपेत्तत: सिद्धो भवति-कटकारि महाविद्या । अधुना नामादि मूर्ति मध्येषट्सु दिक्षु को विदिक्षु च क्ली बहिर्बहि पुट कोष्ठेऽष्टौ जभे-मोहे समालिख्येत । मौह पिशतदप्टाग्राब्रह्माकारमास्थित ॐ ल्बै धीत्रे वषट् फट् बाह्य क्षितिमडल अष्टर्वा लाछण च चडकोणेषु लकारमालिख्य, फल के भूर्यपत्रे वा लिखित्वा कु कमादिभि: जयेत् । य सदा यन्त्र तस्य अवश्य जगत् सर्व वश्य भवति ॥३॥ ॥ ॐ ह्रीं क्लीं जंभे मोहे - ++ अमकं वश्यं कुरू २ ते से षवश्यं यंत्रम् ॥ ॐ रम्यं र र व र स हा हां ॐ को क्षी क्ली ब्लूद्रां द्री पद्ममालिनी । ज्वल २ हन २ दह २ पच २ इदं भूर्य नि-दय २ धूत्र धूम्रांधकारिणी। ज्वलन शिखें हु फट २ यः त्रिमात्रां हतार्थान् हिना ज्वालामालिनी प्राज्ञापयति ।। स्वाहा ।। मन्त्रेण वेष्टयेत् त्रोटयत इद पिड ललाटे व्याधि दग्निवण सिरवागे भूत, ज्वर-ग्रहदोप शाकिनी प्रभृति नाशयती ।।४।। ___ॐ नमो भगवते एषु पतये नमो नमोऽधिपतये नमो रुद्राय ध्वस २ खड्गरावण चल २ विहरनपे २ स्फोटय २ स्मशान भस्म नाचिता शरीरघण्टा कपालमालाधरा यथा व्याघ्र भ्रम परिधानाय शशाकित शेखराय कृष्णसर्पयज्ञोपवीताय चल २ चलाचल २ अनिवृत्तिक पिपीलिनी हन २ भूत प्रेत त्रासय २ ह्री मण्डल मध्ये कट २ वत्स कुशेममानमत्र प्रवेशय आवह प्रचड धारासि देव रुद्रो-आपेक्षय महारुद्रो अाज्ञापयति ठ त्र स्वाहा ।। भूत मत्र ।।४।। इदानी योगिनी चकारणांतरं 'कंदर्णचन' सप्रपंचमाह ।। __ श्लोकार्थ नं ४ (४) भृगी, काली, कराली, आदि देवियो के परिवार से सहित तथा चडी, चामु डी और नित्या नाम को धारण करने वाली, क्षा क्षी शू क्ष इन अक्षरो से आधे क्षण मे ही शत्रु का
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy