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लघुविद्यानुवाद
ॐ ह्री कुशमाददामि स्वाहा । दर्भपूलमादाय सर्वद्रव्य स्पर्शनम ॥४५॥ यह मन्त्र पढकर दर्भ के पूले को उठाकर सब द्रव्य से छुवावे ॥४५।। ॐ ह्रीं परम पवित्राय स्वाहा ।। अनामिकांगुल्यां पवित्रधाररणं ॥४६।। यह मन्त्र पढकर अनामिका उगली में पवित्र पहिने ॥४६।। ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राय स्वाहा ॥ यज्ञोपवीतधारणम् ॥४७॥ यह मन्त्र पढकर यज्ञोपवीत पहने ।।४७॥ ॐ ह्रीं अग्निकुमाराय परिषेचनं करोमि स्वाहा । अग्निपर्युक्षरणम् ॥४८।। यह मन्त्र पढकर कुड के चारो ओर पानी की धार छोडे ।।४८॥
ततः ॐ ह्री अर्ह अहसिकेवलिभ्यः स्वाहा ॥ ॐ ह्रीं पञ्चदशतिथिदेवेभ्यः स्वाहा ।। ॐ ह्रीं नवग्रहदेवेभ्यः स्वाहा ।। ॐ ह्री द्वात्रिंशदिन्द्र भ्यः स्वाहा ।। ॐ ह्रो दशलोकपालेभ्यः स्वाहा ।। ॐ ह्री अग्नीन्द्राय स्वाहा षड़े तान् मन्त्रानष्टादशकृत्वः पुनरावर्तनेनोच्चारयन् स्त्रुवेगप्रत्येक माज्याहुति कुर्यादित्याज्याहुतयः ॥४६॥
इसके बाद “ॐ ह्रो अर्ह" इत्यादि छह मत्र को अठारह बार दोहरा कर बोले, प्रत्येक मन्त्र को वोल कर सूची घृताहुति करे। इस तरह एक सौ आठ आहुति हा जाती है, इसे घृताहुति कहते है ॥४६॥
ॐ ह्रां अर्हत्परमेष्ठिनस्तर्पयामि स्वाहा ॥ ॐ ह्रीं सिद्धपरमेष्ठिनतपयामि स्वाहा ॥ ह्रौ उपाध्यायपरमेष्ठिनस्तर्पयामि स्वाहा ॥ ॐ ह्र सर्वसाधुपरमेष्ठिनतपयामि स्वाहा ।। अवांतरे पंचतर्पणानि "ॐ ह्रा" इत्यादि पढ़ कर मध्य में पांच तर्पण करे ।।५०॥
____ यह तर्पण हर एक द्रव्य का हो और होम हो चुकने के वाद किया जाता है। इसलिये इसे अवान्तर तर्पण कहते हैं।
ॐ ह्रीं अग्नि परिषयामि स्वाहा ।। क्षीरेणाग्निपर्यु रणक्षम ॥५१॥ यह मन्त्र पढकर अग्नि को दूध की धार देवे ॥४४॥
अथ समिधाहुतयः ॐ ह्रा ही ह ह्रो ह्र असि आउसा स्वाहा ।। अनेन मन्त्रेण समिघाहुतयः करेण होतव्या इति समिधा होम १०८ ॥ तत षडाज्या हुतय पञ्च तर्पणानि पर्युक्षणच ॥५१॥