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जिनवाणी का माहात्म्य
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जिनवाणी का एकाग्रचित होकर सेवन करने का फल आत्मा की उन्नति करना है । यह उन्नति तभी सम्भव है जबकि सद्साहित्य को पढकर धर्म के मर्म को समझने की जिसमे जिज्ञासा या आकाक्षा हो । सम्यग्ज्ञान के महत्व को जिन्होने समझा है, उन्होने स्वाध्याय को अपना कर सद्साहित्यो का अध्ययन किया है । वह अपनी आत्मा के निज स्वभाव मे रत रहते है । ज्ञानाराधना एक तपश्चर्या है।
अत कहा गया है -"स्वाध्यायो परम तप" अर्थात स्वाध्याय ही परम तप है । क्योकि स्वाध्याय के विना कर्मो की निर्जरा नही हो सकती है । ज्ञान के द्वारा ही प्रत्येक जीव अमृतपान कर सकता है । जिनवाणी का रसास्वादन शान्ति
और सुख को प्रदान करने वाला है जैसा सुख जिनवाणी के अध्ययन करने से होता है, वैसा सुख अन्य किसी वस्तु के सेवन करने से प्राप्त नही होता है ।
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ज्ञान की महिमा को निम्न पक्तियो द्वारा भी जाना जा सकता है -
ज्ञान समान न पान जगत में सुख को कारण । यह परमामृत जन्म जरामृत रोग निवारण ॥
अत पूर्वाचार्यो द्वारा लिखित सद्साहित्य को प्राप्त कर जिनवारणी का रसास्वादन कर शान्ति व सुख को प्राप्त करते हुये मोक्ष पथ को और बढने का प्रयत्न करे।
प्रकाशन संयोजक