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________________ ६४ विधि लघु विद्यानुवाद रण होता है। इससे सर्व प्रकार का उपसर्ग दूर होता है । मन्त्र पढता जाय और मन्त्रित धूल को फैकता जाय । ॐ नमो भगवऊ संभवस्स श्रपराजियस्स सिज्झउ मे भगवऊ महवइ महाविद्या संभवे महासंभवे ठः ठः ठः स्वाहा । विधि - चतुर्थ स्थान याने दो उपवास करके जपे साढे बारह हजार मन्त्र, फिर इस मन्त्र से भोजन अथवा पानी अथवा अर्क अथवा पुष्प या फल को अट्ठसय ( ग्राठ सौ बार ) मन्त्रित करके जिसको दिया जायेगा वह वशी हो जायगा । विधि ॐ नमो भगवऊ रहऊ प्रजिय जिरणस्स सिज्झऊ मे, भगवइ महवइ महाविद्या जिए अपराजिए प्रनिहाय महाबले लोग सारे ठ ठः स्वाहा । — इस विद्या का उपवासपूर्वक ८०० बार जाप्य करे तो दारिद्र का नाश, व्याधियो का नाश, पुत्र की प्राप्ति, यश की प्राप्ति, पुण्य की प्राप्ति, सौभाग्य की प्राप्ति, दम्पत्ति वर्ग प्रीति की प्राप्ति होती है । ॐ नमो भगवऊ अभिनदरणरस सिझ (ष्य ) ऊ मे भगवइ महवइ महाविद्यानंदणे अभिनन्दर ठः ठः ठः स्वाहा । विधि :- दो उपवास करके फिर पानी को अट्ठसय ( आठ सौ बार ) जाप से मन्त्रित करके जिसका मुखमन्त्रित पानी से धुलाया जायेगा वह वशी हो जायगा । विधि ॐ नमो भगवऊ रहऊ सुमइस्स सिझ (ष्य ) ऊ मे भगवइ महवइ महाविद्या समरणे सुमरण से सोमरण से ठः ठः ठ. स्वाहा । - दो उपवास करके अट्ठसय ( आठ सौ बार ) मन्त्र प्ररहत प्रभु के सामने कोई भी कार्य के लिये अथवा दुकान की वस्तुओ के लिए जाप करके सो जावे तो भविष्यत भूत, वर्तमान मे क्या होने वाला है, जो भी कुछ मन मे है, सबका स्वप्न मे मालूम पडेगा, सर्व कार्य सिद्धि होगी । ॐ नमो भगवऊ रहऊ पउमप्पहस्स सिज्झ ( ष्य ) उ मे भगवई महवइ महाविद्या, पउमे, महापउमे, पउमुत्तरे पउमसिरि ठः ठ ठः स्वाहा । - इस मन्त्र को भी अट्ठसय ( आठ सौ बार मन्त्र ) दो उपवास करके करने वाले मनुष्य के सर्वजन इष्ट हो जाते है यानि सर्व लोगो का प्रिय हो जाता है । ॐ नमो भगवऊ रहऊ महाविद्या, पस्से, सुपस्से, सुपासस्स सिज्झ (ष्य ) उ मे भगवइ महवइ इपस्से, सुहपस्से ठः ठ ठ स्वाहा । •
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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