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प्रकारांतर से
यंत्र प्रारण प्रतिष्ठा मंत्र
ॐ को ही प्रसि श्रा उसा य र ल व श ष स हंस अमुकस्य त्वग्र शास्त्र मास मेदोऽस्थिमज्जा शुक्रारिण घातवः प्रमुकस्य यत्रस्य काय वाड मनश्चक्षु श्रोत्र धारण मुख जिव्हा सर्वाणि इन्द्रियाणि शब्द स्पर्श रस गध, प्राणायान समानोदान व्याना सर्वे प्राणा ज्ञान दर्शन प्राणश्च इहेव प्राशु ग्रागच्छत-२ सवोषट् स्वाहा । अत्र तिष्टत-२ ठ ठ स्वाहा । अत्र मम् सन्निहिता भवत-२ वपट् स्वाहा । अत्र सर्वजन सौख्याय चिरकाल नन्दतु वद्धता वज्र मया भवन्तु । ग्रह वज्रमयान करोमि स्वाहा ।
इस प्रकार यंत्र की प्रारण प्रतिष्ठा करके श्रागे की स्थापनादि करके पूजा करे 1
कम से कम प्राण प्रतिष्ठा मत्र को सात बार या नौ बार पढे, पढता जाये और यत्र के ऊपर पुष्प क्षेपण करता जाये अन्त मे यत्र पूजा के बाद विसर्जन करके यत्र को मंदिर वेदिया घर मे उच्च स्थान पर रख देवे, यत्र को गन्दे हाथादिक न लगावे, मासिक धर्म वाली स्त्री आदि न छुए, नही तो यत्र का प्रभाव कम हो जाता है, यत्र से कार्य होना बन्द हो जाता है, लाभ होने की अपेक्षा नुकसान होने लगता है यत्र तो प्रभाविक ही होता है लेकिन श्रद्धा पक्की होनी चाहिये श्रद्धा विना कोई भी कार्य नही होता । हमने देखा लोगो के घर में अनेक यत्र भरे पड़े है तो भी उनका कार्य नही हो रहा है और सबके पास यत्र लेते फिरते है । मेरा कहना है कि यत्र चाहे एक ही ले औौर चाहे किसी के पास से ही लो किन्तु श्रद्धा रखखो, श्रद्धा बिना कोई कार्य सिद्ध नही होता । यन्त्र का प्रतिदिन गध धूपादि पूजा करते रहना चाहिये ।