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लघुविद्यानुवाद
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ॐ नमो चडिकायै योग वाही (योग) प्रवर्तय महामोहय योग मुखी योगीश्वरी (महायोगे) महामाये (चारू चारूणि) रूपिणी महा हरीहर भूत प्रिये स्व स्वार्थ नृणातिशय जिह्वाग्रे सर्व लोकाना वश्य २ कुरू २ दर्शय साधय स्वाहा । हस्ताकर्षणी नदीद्रह तडागे वा आकाशे चद्र मडलेवा खङ्ग दीप शिखाया या अगुष्ठे दर्पणे तथा स्वप्ने, खङ्ग तथा
देवी अवतीर्य शुभाशुभ (ये आकर्षणी विद्या है) १) मन्त्र :- ॐ नमो चंडिकाये योगं याहि २ स्वाहा । ॐ नमो चंडि वज्रपाणये महायक्ष
सेनाधिपतये वज्रकोपाय दृष्टोत्कट भैरदाय योगं याही २ स्वाहा । २
१卐 इस मन्त्र को हस्ताकर्षणी विद्या भी, नवाब साहब के यहाँ से छपा पद्मावति उपासना मे कहा है इन पाचो मन्त्रो का एक ही फल होता है । किसी झरने के किनारे अथवा नदी के तट पर बैठकर आकाश मे अथवा चन्द्रमडल मे देवी का ध्यान करके इस मन्त्र का जाप करने से मत्र सिद्ध होता है, इस मत्र का १०,००० जाप करने से सिद्ध होता है।
खड्गेदीपशिखायां वा अंगुष्ठे दर्पणे तथा ।
स्वप्ने खड्गे तथा देवी मवतार्य शुभाशुभं ।।
तलवार, दीपक की ज्योति, अगुठा अथवा अगुठे के ऊपर नाखून, दर्पण, निद्राधीन मनुष्य अथवा तलवार के ऊपर देवी का प्रथम कहे हुये चार मन्त्रो से आवाहन, पूजन करके फिर जो जानने की इच्छा हो उसकी इच्छा करना, उससे ज्ञान होता है, अथवा किसी व्यक्ति का आकर्पण करना हो तो उस तलवारादिक को दूसरे की दृष्टि मे पडे ऐसा रखकर इच्छित स्थान पर जाने से इच्छित व्यक्ति साधक के साथ मे मोहित होकर पीछे २ आ जायगा।
२) यह मत्र वशीकरण और आकर्षण के लिये श्रेष्ठ मत्र है एक हजार जाप्य करके दोनो हाथो से १०० पुष्पो से पूजा करना, मत्र सिद्ध हो जायगा।
अब शत्र को नाश करने के लिये मत्रो का प्रतिपादन आचार्य कर रहे है, इन मत्रो के प्रयोग उग्र होते है साधक सावधान रहे, बने जहाँ तक तो इन मत्रो का प्रयोग करे ही नही, कभी अत्यन्त आवश्यक कार्य पड गया है, जैसे चतुर्विध सघ के ऊपर महान उपद्रव ही हो रहा हो, और अन्य उपायो से हट नही रहा हो तो सज्जनो का रक्षण करने के लिये मत्र शास्त्रकारो ने यह विधि लिखी है, हमारा धर्म अहिसा प्रधान है, ध्यान रख। .
अत्र मारणे कर्मणि ब्राह्मण धार्मिक जनमिष्ट राजा, स्त्री, जन व्यक्तिरिक्त दष्टम्लेच्छादयो विषयाः। तत्रापि स्वरोषिते लोकानुग्रहाय वा मारणं कुर्यात । न तु द्रव्यादि लोभेन ॥