________________
लघुविद्यानुवाद
१४३
अक्खरेसुम ताजा सावरि सा वइ मेह कुणइ सुभिक्ख न सन्देहो। एयाइ अक्खराइ सोलस
जो पढइ सम्म मुवउत्तो सोदुष्यिवखु दुराउलपर चक्व भयाइ हणइ सया। मन्त्र :-ऐं ह्रीं भ्रू
टयू झू हू क्ले ह्रले ह्रसां कों ह्रीं ह्र क्ष्मौक्ष्मः । विधि -यह अट्ठारह अक्षर वाली त्रैलोक्य विजयादेवी नाम महाविद्या वार ३३ चावल तीनो
काल ध्यान करने से सर्व इष्ट को सिद्धि होती है । मन्त्र -ॐ अर्ह नमः ॐ ह्री ३ ॐ श्री ३ ॐ प्री २ ॐ वी ३ ॐ भ्रीं ३ म्री ३
ज्री ३ ली ३ झी ती ३ हुं फट् स्वाहा । विधि -यह विद्या ३१ अक्षर को महा विद्या है, सर्व कर्म करने वाली है। प्रथम विद्या चोर भय होने
पर १६ बार जाप करना चाहिये। दूसरी विद्या शाति कर्म स्थापना, प्रतिष्ठादिक मे, राजा आदि के पास जाने के समय ३ बार जपना चाहिये । तुरन्त ही राजा के दर्शन होते है। तीसरी विद्या शाकिन्यादिक मे, मुद्गलादि दोष मे औरचोदर पीडा मे १०८ बार कलपानी अादिक करना चाहिये। चतुर्थ विद्या जब गर्भ गिरने लगे, तब पानी तेल को १०८ बार मन्त्रित करे फिर लगावे । पचम्या राज शत्रु भयादिषु स्वय जाप्या आतुर पार्वा च जपनीया इष्ट देवता दीना च भोग कार्य । षष्टया मनुणस्य धनुर्वाते सति गगल १०७६ दाह्यते कर्णे च जप्यते । सप्तम्या सर्प दष्टस्य घन घृत वार २१६६ जप्तापानीय कृष्ण जीरक च परि जाप्यो डाह्यते लहरी नाश । अष्टमीयदा मेघजानदि मार्गा दो विषमा भवति तदा जात्य ककुमेन जलेन् वा, हस्त पट्ट (द) कादो लिखित्वा कर्परा गुरु धूपा दिना पूज्या बार १०८ नदी सुगमा भवति । नवमी जपनीया खनादि स्तम्भ । दशमी पदीप नादौ स्मरणीया एक वस्त्र परि जाप्य स मुख स्तम्भ दिव्ये उजि जप्त्वा
शुक्ल (सरसो) सर्षपा अग्नौ क्षेप्याऽनिष्टोऽश्रु द्धो भवति । मन्त्र -ॐ नमो धर्मराजाय मृत्युस्थाने श्रुभं कराय काक रूपिणे ॐ ठः ठः
स्वाहा। विधि .-अय सदावार ३ त्रय जाप्य यदाषह ६ मासा वधिरायुर्भवति तदाऽय विस्मरति उत्कृष्टतो
दशानामेवाय देय ।
मन्त्र :-ॐ अर्ह न्मुख कमल वासिनि पापात्म क्षयं करि श्रुत ज्ञान ज्वाला सहस्त्र
प्रज्वलिते सरस्वती मत्पापं हन हन दह दह क्षां क्षी सूक्षौ क्षः क्षीर धवले अमृत संभवे वं वं हु कट् स्वाहा ।