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________________ ५०८ लघुविद्यानुवादे भूविश्वेक्षण चन्द्र चन्द्र पृथिवी युग्मैक संख्याक्रमाच्चन्द्राम्भोनिधि बाणषण्नवसन् दिक् खेचराशादिषु । रिपुमारविश्व भयहृत क्षोभन्तराया विषाः लक्ष्मीलक्षण भारती गुरु मुखान्मन्त्रानिमा देवते ।।१५।। श्लोकार्थ नं १५ १ ४ १ १ ५ ० ३ ६ ५ (१५) भू, विश्व, क्षरण, चंद्र, चंद्र, पृथ्वी प्रादि क्रम से चद्र, ग्रभो, निधि, वारण, षष्ट, ह १० मुख, दिशा, खेचरादि को से तैयार होते हुये चतुर्मुख यन्त्र से वशीभूत होने वाली पद्मावती भगवती देवी, जो तुमको याद करता है, उसको तुम ऐश्वर्य प्रदान करतो हो, साधक के मारी रोग वगैरह और सर्वभय नष्ट होते है । काव्य नं. १५ यन्त्र रचना चतुर्दशदल कमल कृत्वा इम्यू बीज मध्ये, स्थाप्य दलेपु मन्त्र । ॐ ह्री पद्मे राज्य प्राप्ति ही क्ली कुरु २ नम लिखेत । तदुपरी षोडश द्रो कारेन वेष्टयेत तदुपर काव्य लिंख्येत । पश्चात धूप दीप नैवेद्य, पुप्पेन पूजन कृत्वा, राज्य लाभ सतान प्राप्तिर्भवति । मन्त्र साधन विधि - पंच दशम काव्यस्य इम्यू बीज रक्त दंता शक्ति चतुर्दशाक्षरे। - ॐ ह्री पद्मे राज्य प्राप्ति ह्रीं क्ली कुरु २ नम । श्रनेन मन्त्रेण षोडश सहस्त्र जाप्यं साधयेत्, मास द्वयेन राज्य प्राप्ति भवति । मन्त्र दीप इस मन्त्रको सुगन्धित द्रव्य से भोजपत्र पर व सोना, चादी के पत्रे पर लिख कर धूप तो राज्य का लाभ, सन्तान की प्राप्ति होती है । श्रीर मन्त्र सिद्ध कर लेवे, तो दो मास मे राज्य नवेद्य पुष्पो से यन्त्र की पूजा प्राप्ति मन्त्र का जाप सोलह हजार करके होती है । विधि न० ३ श्लोक न० १५ (१५) इस श्लोक का मंत्रीद्वार, एक साथ तीन, एक, एक, एक, दो, एक, इसकी संख्या अनुक्रम
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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