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लघुविद्यानुवाद
जब मन्त्र जपने बैठे, पहले रक्षा-मन्त्र सकलीकरण कर अपनी रक्षा कर लिया कर ताकि कोई उपद्रव अपने जाप्य मे विघ्न न डाल सके। अगर रक्षा-मन्त्र जप कर मन्त्र जपने बठे तो सॉप, विच्छू, भेडिया, रीछ, शेर, बकरा उसके बदन को न छू सके-दूर ही रुके। मन्त्र पूर्ण होने पर जो देव-देवी वगेरह साप बनकर उसको डराने आवे तो रक्षा मन्त्र जप कर जाप करने से उसके अग को वह छ नही सकेसामने से ही डरा सके। जब मन्त्र पूर्ण होने को आवे तब देव पूर्ण देवी विक्रिया से साँप वगैरह डराने आवे तो डरे नही। चाहे प्राण जावे तो डरे नही तो मन्त्र सिद्ध होय | मनोकामना पूर्ण होय। यदि विना मन्त्र रक्षा के [ रक्षा-मन्त्र के ] जपने बैठे तो पागल हो जावे। इस वास्ते पहले रक्षा-मन्त्र जप कर, पश्चात् दूसरा मन्त्र जपना चाहिये। मन्त्र जहाँ तक हो सके ग्रीष्म ऋतु मे जपना चाहिए ताकि धोती दुपट्टा मे सर्दी न लगे । मन्त्र सिद्ध करने मे धोती दुपट्टा दो ही कपडे रक्खे। वे कपडे शुद्ध हो, उनको पहने हये पाखाने नही जावे, खाना नही खावे, पेशाब नही जावे, सोवे नही, जब जप कर चुके तो उन्हे अलग उतार कर रख देवे, दूसरे वस्त्र पहन लिया करे, यह वस्त्र नित्य हर दिन स्नान कर बदन पौछ कर पहना कर। वह वस्त्र सूत के पवित्र वस्तु के हो। ऊन, रेशम वगैराह अपवित्र वस्तु के न हो। स्त्री सेवन न करे । गृह कार्य छोडकर एकान्त मे मन्त्र जप सिद्ध करे। मन्त्र मे जिस रग की माला लिखी हो उसी रग का आसन यानि बिस्तर आदि । धोती दुपट्टा भी उसी रग का हो तो और भी श्रेष्ठ है, यदि माला उसी रग की न होवे तो सत की माला उस रग से रग लेवे। जब मन्त्र जपने बैठे तो इतनी बातो का ध्यान रखे।
॥७॥ पहले सब काम ठीक करके मन्त्र जपे।
॥८ ॥ सबसे अच्छा आसन डाभ का लिखा है, या सफेद या पीला या लाल-जैसा जिस मन्त्र मे चाहिये वैसा बिछावे ।
॥६॥ अोढने की धोती-दुपट्टा सफेद उम्दा हो या जिस रग का जिस मन्त्र मे चाहिये वैसा हो।
॥१०॥ शरीर की शुद्धि करके परिणाम ठीक करके धीरे-धीरे तसल्ली के साथ जाप्य करे, अक्षर शुद्ध पढे ।
॥११॥ मन्त्र पद्मासन मे बैठकर जपे। जिस प्रकार हमारी बैठी हई प्रतिमायो का ग्रासन होता है, बॉया हाथ गोद मे रखकर दाहिने हाथ मे जपे। जो मन्त्र बाये हाथ मे जपना लिखा हो तो वहाँ दाहिना हाथ (गोद) मे रखकर वाये हाथ मे जपे। ॥१२॥ जहाँ स्वाहा लिखा हो वहाँ धूप के साथ जपे यानि धूप आगे रखे।
॥१३॥