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लघुविद्यानुवाद
जहाँ दीपक लिखा हो, वहाँ घी का दीपक आगे जलाना चाहिये ।
॥१४॥ जिस-जिस अंगुली से जाप्य लिखा हो उसी अँगुली और अंगूठे से जाप्य जपे । अँगुलियो
के नाम आगे लिखे हैअंगुलियो के नाम:
अँगूठे को अंगुष्ठ कहते है। अँगूठे के साथ की अगुली को तर्जनी कहते है। तीसरी बीच की अंगुली को मध्यमा कहते है।
चौथी यानि मध्यमा के पास की अगुली को [अंगुष्ठ से चौथी को ] अनामिका कहते है। पाँचवी सबसे छोटी अँगुली को कनिष्ठा कहते है ।
अंगुष्ठेन तु मोक्षार्थ धर्मार्थ तर्जनी भवेत् ।
मध्यमा शान्तिकं ज्ञेया सिद्धिलाभायऽनामिका ॥१॥ जाप्य विधि मे मोक्ष तथा धर्म के वास्ते अँगुष्ठ के साथ तर्जनी से, शान्ति के लिये मध्यमा तथा सिद्धि के लिये अनामिका अँगुली से जाप्य करे।
कनिष्ठा सर्व सिद्धार्थ एतत् स्याज्जाप्य लक्षणम् ।
असख्यातं च यज्जप्तं तत् सर्व निष्फलं भवेत् ॥२॥ कनिष्ठा सर्व सिद्धि के वास्ते श्रेष्ठ है, ये जाप्य के लक्षण जाने बिना मर्यादा किया हुआ सब जाप्य निष्फल होता है अर्थात् किसी मन्त्र का २१ बार जाप्य लिखा है तो वहाँ २१ से कम या अधिक जाप्य नही करना, ऐसा करने से वह निष्फल होता है। मन्त्र सिद्ध नही होता।
अंगुल्यग्ररण यज्जप्तं यज्जप्तं मेरुलंघने ।
व्यग्रचित्त न यज्जप्तं तत् सर्व निष्फल भवेत् ॥३॥ अंगुली के अग्र भाग से जो जाप किये जाय तथा माला के ऊपर जो तीन दाने मेरु के है, उनको उल्लघन करके जो जाप्य किये जाय तथा व्याकुल चित्त से जो जाप्य किया जाय वह सब निष्फल होता है।
माला सुपंचवर्णानां सुमाना सर्व कार्यदा । स्तम्भने दुष्टसंत्रासे जपेत् प्रस्तरकर्कशान् ॥४॥