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________________ लघुविद्यानुवाद ४७७ उत्कृष्ट लीला को करने वाली है, जा जी न ज्र ये चार अक्षर के मत्रो से पवित्र है और जो चन्द्रमा की किरण के समान उज्ज्वल तथा दूध की धारा के समान गौरवर्ण वाली, जिनकी जटा सर्प से बँधी हुई है, जो कालकूट विष को दूर करने वाली है, हा हा हु ऐसा शब्द करने वाली हाथ मे कमल को धारण करने वाली, हे देवि पद्मावती मेरी रक्षा करो ॥७॥ श्लोक नं. ७ के यन्त्र मन्त्र (१) ल व हु पक्षिना मे देवदत्त गर्भित करके वेष्टित करे फिर सोलह दल वाला कमल बनावे, उन दलो मे क्रमश अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋलु लू ए ऐ ओ औ अ अ लिखकर बाहर व'कार से वेष्टित करे, फिर बारह दल का कमल बनावे। उन दलो मे क्रमश ह हा हि ही हु हू हे है हो हो ह ह बाहर लिखे । ह कार दोनों सपुट करे, बाहर झ्वी क्ष्वी ह स वेष्टित करे। फिर बाहर एकार द्वय सपुटस्थ करके मायावीज को त्रिगुणा वेष्टित करे। इस मन्त्र को कहा गया जो यन्त्र पूर्वोक्त है। उसी प्रकार का खा गा घा चा छा ज्वी ज्वी नम । १) इस मन्त्र को गरुड ध्वज मत्र कहते है । एक हजार जाप से मत्र सिद्ध होता है। लेकिन कर (हाथ) जाप्य करना चाहिये, माला वगैरह से नही ।। १-ॐ कों प वं झं हं सः । २-ॐ क्षां स हूं ह्रीं स्वी स नौ हं सः। ३-ॐ कु कुवलय हं सः। ४-ॐ कों खों गां घां चां छां ह्रीं क्लीं नमः । ५-ॐ क्षिप ॐ स्वाहा । ६-ॐ ह हा हि ही ह ह हे है हो हो ह हः । ७-ॐ ऋबह्व : पक्षि वः स्वी। ८-ॐ को पं वं झं हं सः ठः स्वाहा । 8-ॐ कुरु २ कुलेण उपरि हाल विषउपडु मन्नु गरूडाहि हा हं सः पक्षि यः ३ को पं वं ह स ह स । ॐ स्वाहा हा हा हंसः पक्षि ।। ये सब गरूड मन्त्र है, इन सब मे पहला मन्त्र पद्मावती का ध्यान और पूजन करने का है, कितना ध्यान करना चाह्येि सो नही लिखा है, किन्तु इस प्रकार के मत्रो का १०८ वार सामान्यतया प्रतिदिन जप करना चाहिये, उसी प्रकार पाराधक शातिकर यन्त्र का ध्यान पूजन करना चाहिये। मत्र का दूसरी प्रकार से भी जप किया जाता है लेकिन चक्रमुद्रा से जप किया जाता है। तीसरे प्रकार से मत्र का जाप लाल कनेर के सुगन्धित फूलो से जाप करना है।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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