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________________ लघुविद्यानुवाद - - मन्त्र .-क्षिा, ॐ स्वाहा । विधि --इस मत्र को पढकर पानी मे मत्रीत करके पिलाने से अजीर्ण विष नाग होता है। मन्त्र -ह ह' हि ही हु हू हे है हो हो हं हः । विधि --इस मत्र से पानो मत्रीत करके उस पानी से कान को ताडन करे, तो मनुष्य निर्विष होता है। मन्त्र -जच ज्वः पक्षि वां स्वी ह स । इस मन्त्र को आराधना करे । विधि -श्वेत अक्षत, श्वेत पुष्प से श्री खडादि सुगधित द्रव्यो से सरावसपुट मे लिखे तो शाति पुष्टि नुष्टि होती है। इसको जल से भरे हुये घडे मे डालने से शीत ज्वर, वात ज्वर का नाश होता है। ग्रह पीडा को निवारण करता है। सर्व रोग नही होता है अनुभूत है। मन्त्र :-ॐ विझकारे स र हंसः अमत ह स ॐ को पंव में हं स ठः ठः ठः स्वाहा । इससे सर्व प्रकार का विप नाश होता है। (२) ड कार मे देवदत्त गभित करके त कार वेष्टित करे, फिर बाहर एक वलय बनावे, उम वलय ने सोलह स्वर लिखे, फिर बारह दल के कमल मे क्रमश ह हा हि ही हु हू हे है हो हौ ह ह लिखे । बाहर ह कार सपुट देवे । उसके बाहर वलय कार मध्ये व, झ, ड, ह, स लिखे, व कार द्वय सपुट करे । २ विधि -अक्षत तथा सफेद पुष्पो से पूजन कर १०००० जाप इत्यादि सम्पूर्ण रोति से आराधना करना फिर मत्र को दीप सपुट के अन्दर लिखकर, यत्र और मत्र दोनो लिखना, उस सपुट को पूजन मे रखना, उससे शाति, दृष्टि तुष्टि होगी स्वय के पूरुषार्य से देवी मन्द करती रहेगी, इस प्रकार इस मत्र को माराधना से आराधक को बहुत लाभ होता है । मन्त्र परोक्त ही जाप करना है। इस मन से मत्रीत परके पानी से भरा हया घडा मे यत्र डालकर, घर वाले व्यकि पिता से ठण्डी से प्राने बाला ज्वर अथवा उष्णता से आने वाला वर उत’ जाता है। इस नी के उपयोग से ज्वर पीडा, ग्रहपीडा तथा अनेक प्रकार के रोग दूर है। जाते है। उपरोक्त मत्र से काजल मयोत करके रोगी के आँख मे आजने गे रोग दूर होता है। जहरी। प्राणी से दिप का प्रभाव होने पर शीघ्र जहर दूर हो जाता है ।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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