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________________ लघुविद्यानुवाद वर्ण-शद्र संज्ञा -वी के नाम से पहचाना जाने वाला यह यन्त्र वृश्चिक और मीन के चन्द्र मे काली स्याही से लिखा जाना चाहिए। इन चारो यन्त्रो के अलग २ फल हैं । ब्राह्मण जाति वाले यन्त्र का फल सर्वश्रेष्ठ माना गया है । अत उसी के विधि विधान का यहा उल्लेख किया गया है। उसे सिद्ध करने मे निम्नलिखित वस्तुओ की आवश्यकता होती है लापसी, पूरी, अनार की कलम, अष्टगन्ध, स्याही, चावल, गुग्गुल, पुष्प, खोपरे के टुकडे २१, नागर बेल के पान २१, सुपारी २१, घृत का दीपक, एक कोरा घडा । विधि -योग्य शुद्ध व एकात स्थान मे पहले पूर्व दिशा की ओर घडे की स्थापना करनी चाहिये। उसके सामने भोजपत्र बिछाना चाहिये । उसके ऊपर के भाग मे घृत का दीपक हो, नीचे के भाग मे धूप का धूपिया हो, जिसमे गुग्गुल का धूप करना चहिए। लापसी, पूरी आदि को भोजपत्र के बाऐ आधा आधा रखना चाहिये । तत्पश्चात् अनार की कमल से भोत्रपत्र पर अष्टगन्ध से यन्त्र लिखना चाहिये । यह यन्त्र लिखते समय 'ह्री या ॐ ह्री श्री" मन्त्र का जाप करते रहना चाहिये । यन्त्र लिखने के बाद उसका पूजन करे। फिर मन्त्र का ६,००० जाप करे । इस प्रकार २१ दिन करे, जिससे सवा लाख जाप पूरा हो जायेगा। मन्त्र और यन्त्र की सिद्धि हो जायेगी, अन्त मे हवन, तर्पण आदि विधि पूर्वक करे। इन यन्त्रो के अक भरने को अलग अलग विधि है । उसका फल भी अलग अलग है जो निम्नाकित है(१) १ से 8 तक के अक भरे, तो हनुमानजी के आकार का यक्ष दर्शन दे।। (२) २ के अक से शुरू कर ६ तक लिखे, फिर १ लिखे तो राज्याधिकारी वश मे हो । (३) ३ से ६ तक लिखे, फिर १-२ लिखे तो व्यापार वृद्धि हो। (४) ४ से ६ तक लिखे, फिर १-२-३ लिखे तो जिसके ऊपर देवी-देवता का दोष हो गया या किसीने उच्चाटन आदि कर दिया हो वह दूर हो जायेगा।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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