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प्रकरणो मे पचपरमेष्ठी स्वरूप मानव के पचतत्व निर्मित शरीर को स्वस्थ्य एव पचभूत निर्मित ससार के रहस्य को समझने के अनेक दुर्लभ और प्राचीन प्रयोगो का भण्डार है । यह ग्रंथराज आपके हाथो मे है ।
अपने निर्ग्रथ गुरु के श्रीचरणो मे, एव अनुभवी योग्य इंद्रियजयी निर्लोभी, परोपकारी, साधु स्वभाव, समी, विद्वानो के सम्पर्क से इस महान ग्रंथ के मंत्र तत्र यत्र जडी बूटी - प्रौषधि | प्रयोग से लाभान्वित होना एव स्वपर उपकार कर पुष्पार्जन करना प्रत्येक का कर्तव्य है । ससारी | मानव और गृहस्थ के लिए अपने धर्म, शील, धन एव मंदिर, देव शास्त्र गुरु तथा परिवार जनो की रक्षा, सेवा के लिये इसके सभी प्रयोग कामधेनु की तरह तृप्तिदायक चितामरण की तरह रक्षक और कल्पवृक्ष की तरह महत्वकाक्षाओ को पूर्ण करने वाले है । आचार्य श्री महावीर कीर्तिजी के अनेक अनुभवी प्रयोग श्री १०८ गणधराचार्य कु थुप्सागरजी महाराज ने कृपापूर्वक सशोधित करन | इस ग्रथराज मे सम्मिलित किये है, तथा श्रावश्यक पद्मावत्याष्टक भी हृदयशील भावुक भक्तो के लिये | सकलित कर दिया है । श्री दि० जेन कुथु विजय ग्रंथमाला समिति के प्रकाशन सयोजक सगीताचार्य, | गुरुउपासक श्री गगवाल शांति कुमारजी उनकी सहायक मित्रमण्डली, सौ. श्री मेमदेवी गंगवाल एव | बाबू प्रदीपकुमारजी गंगवाल ( बी कॉम ) इसके पुन सस्करण के लिये कोटिश साधुवाद सधन्यवाद पात्र है |
इसमे अध्यात्मवाद, भौतिकवाद का मरिणकाचन सयोग है । धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की | प्राप्ति का सरल प्रयोग है । चौसठ यक्षिणी सोलह विद्या देवियो, चौबीस तीर्थङ्करो के शासन देवी| देवताओ के युगल चित्र ह । हाम कुण्डो के नक्शे और सैकडो अनमोल गारूडी, घातु, पारा, अगूठियो Arts प्रयोग है, जिनसे प्रत्येक श्रावक, श्रविका, साधु, तपस्वी, विद्वान, विद्यार्थी लाभान्वित होगे। इसके अनेक प्रयोग मेरे अनुभूत है, जिनसे अनेको प्रसंशापत्र मुझे प्राप्त हुए है । ऐसा यह ग्रंथ राष्ट्रभाषा हिन्दी का गौरव एव मत्र-तत्र यत्र का अभूतपूर्व सदर्भ ग्रंथ है ।
रक्षाबन्धन, १७ अगस्त, १९८६ भारती ज्योतिष विद्या संस्थान ५१ / २ रावजी बाजार, इन्दौर - ४
शुभाकक्ष अक्षय कुमार जैन शास्त्री एम. ए प्राध्यापक, हिन्दी विभाग
गुजराती कला विधि महाविद्यालय
इन्दौर