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लघुविद्यानुवाद
श्री चडीश. शकार ( शेष पूर्ववत् ) संयुक्त धूम्र भैरव्या रक्तस्य वलि भायुत नाद विन्दु समायुक्त बीज स्याद्भ त भैरवी।३।
स्वी फल च वास्णी शान्ति स्तुष्टि पुष्टि वितन्य ते इत्यप्ट गुणोत्पत्ति फल नव निधि फलोत्पत्ति सूच्यते तद्यथा ह्री तु सूचित मेव पर तु वर्णान्त प्रादि जिनोयोरेफ स्त लगत स गोमुख राट् तूर्य स्वर स बिन्दु सभवेच्च श्वरी सन इत्यभिधानार्थ पुनम्क्तम ने नैव क्रमेण वर्णान्त पार्श्व जिनोयो रेफस्त लगत. 'स' धरणेन्द्र स्तुर्य स्वर स बिन्दुः सभवेत्पद्मावती सज्ञ -
इत्यभिधानमपि सगत कथं अ वा ज्वालामुखी काली चक्रा पद्मावती ति 'च' लक्ष्मी सरस्वति दैव्यो 'जैना' शासन भाक्तिका शक्ति स्पा एक स्पा ध्यातव्या वर देवता यासा प्रतीति सिद्धयर्थ पुरु नभ्यत्य सम्मती इति विद्यानुशासनोक्त मल्लिपेणाचार्य ॥
क्ली क्रोधीगो बल भेदी च धर्म भैर व्यलकृत' नाद विन्दु ममायुक्त कामराज पर स्मर । क्रोधीश. ककारा बलभेदी 'लकार' व्ल व भय करो बलभिलदा युक्तो नाद युतो भवेत् विदारी भूषितो भूत सज्ञया द्रावणो मत ।
द्रा द्री द्वय काम युग रति काम द्वयं प्रद उत्पति बीज कोशाच्च मोहने कर्मणि स्मृता ।४।
आ 'बीज' पाश वीज स्यात् को बील त्व कुशाह्वय क्षी वीज पृथ्वी बीज त्रिण्यापि प्रीति कारण।
चण्डेन 'कविना' 'प्रोक्ता निधियो' 'नव' कि न च, लिखिताश्चेति प्रश्नेचोत्तर शृणत भाक्तिका ।
ह्रा ह्री क्षा क्षी तू क्षे ह ह्री ह इत्येता निधियो मता । वश्याकर्षण उन्मादोच्चाटन स्थम्भनानि च तुष्टि पुष्टि शरीरस्य धातु वर्द्धन कारिका , इत्युक्ते स्ता कथ ने 'त्युरमाहा' काव्येऽस्मिन नव कर्माणि नोक्तान्य स्मात् कृतानि च, मोहनाकर्षण शान्ति पुष्टि मुस्कान सन्ति चात पृथक, उक्तानि, इति सक्षेपतो बीज विषय फल प्रथम काव्यस्य गत ॥
यन्त्र रचना यन्त्र रचना इस प्रकार करे। वलयाकार छ घेरे बनाकर बोच कणिका मे, गरूडा रूड अष्ट भुजा वाली चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति बनाकर अष्टदल वाला प्रथम वलय मे कमल बनावे । और कमल के प्रत्येक दल मे श्री, बीज की स्थापना करे, पाठो ही दल मे आठ श्री बनाव ।