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लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न २८
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उज्ज्वल बनाना चाहते है उन पुरुषो को इस यन्त्र की आराधना करनी चाहिये । दूसरा चौबीस जिन पेसठिया यन्त्र ॥२६॥
। पंचा षष्टि यन्त्र भित ॥२६॥ श्री चतुर्विशित जिन स्त्रोत्रम् । आदि नेमि जिन नौमी सभव सुविध तथा, धर्म नाथ महादेव शाति शाति कर सदा ॥१।। अनते सुव्रत भक्तया नमि नाथ जिनोत्तमम् । अजित जित कन्दर्प चन्द्र चन्द्र समप्रभम् ॥२॥ आदिनाथ तथा देव सुपार्श्व विमलजिन । मल्लि नाथ गुणोपेत धनुषा पञ्च विशतिम् ॥३॥ अरनाथ महावीर सुमति च जगदगुरूम श्री पद्म प्रभ भान । वासुपूज्य सुरैर्नतम् ।।४।। शीतल शीतल लोके श्रेयास श्रेयसेसदा । कुन्थु नाथ चवामेय श्री अभिनन्दन जिनम् ।।५।। जिनाना नामभिर्वद्ध पचषष्टि समुद्भवा। यन्त्रो ऽय राजते लोके श्रेयास यत्र तत्र सोख्यम् निरन्तरम् ।।२।। यस्मिन गृहे महा भक्तया यन्त्रो ऽय पूज्यते बुधैः । भूतप्रेतेपिशाचादि भय तत्र न विद्यते ।।७।। सकल गुण निधान यन्त्र मेन विशुद्धम् । हृदय कमल कोषे धी मता ध्येय रूपम् । जयतिलक गुरू श्री सूपर राजस्य शिष्यो वदति सुख निदान । मोक्ष लक्ष्मो निवासम् ।। दूसरे पेसठिये यन्त्र की स्थापना ॥२८
का नाम आवे इस यन्त्र का जो स्रोत्र पाठ श्लोक का बताया है उसका पाठ करते समय जिन तीर्थकर का