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________________ २७६ लघुविद्यानुवाद यन्त्र न २८ १६ . . १२ । १० उज्ज्वल बनाना चाहते है उन पुरुषो को इस यन्त्र की आराधना करनी चाहिये । दूसरा चौबीस जिन पेसठिया यन्त्र ॥२६॥ । पंचा षष्टि यन्त्र भित ॥२६॥ श्री चतुर्विशित जिन स्त्रोत्रम् । आदि नेमि जिन नौमी सभव सुविध तथा, धर्म नाथ महादेव शाति शाति कर सदा ॥१।। अनते सुव्रत भक्तया नमि नाथ जिनोत्तमम् । अजित जित कन्दर्प चन्द्र चन्द्र समप्रभम् ॥२॥ आदिनाथ तथा देव सुपार्श्व विमलजिन । मल्लि नाथ गुणोपेत धनुषा पञ्च विशतिम् ॥३॥ अरनाथ महावीर सुमति च जगदगुरूम श्री पद्म प्रभ भान । वासुपूज्य सुरैर्नतम् ।।४।। शीतल शीतल लोके श्रेयास श्रेयसेसदा । कुन्थु नाथ चवामेय श्री अभिनन्दन जिनम् ।।५।। जिनाना नामभिर्वद्ध पचषष्टि समुद्भवा। यन्त्रो ऽय राजते लोके श्रेयास यत्र तत्र सोख्यम् निरन्तरम् ।।२।। यस्मिन गृहे महा भक्तया यन्त्रो ऽय पूज्यते बुधैः । भूतप्रेतेपिशाचादि भय तत्र न विद्यते ।।७।। सकल गुण निधान यन्त्र मेन विशुद्धम् । हृदय कमल कोषे धी मता ध्येय रूपम् । जयतिलक गुरू श्री सूपर राजस्य शिष्यो वदति सुख निदान । मोक्ष लक्ष्मो निवासम् ।। दूसरे पेसठिये यन्त्र की स्थापना ॥२८ का नाम आवे इस यन्त्र का जो स्रोत्र पाठ श्लोक का बताया है उसका पाठ करते समय जिन तीर्थकर का
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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