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________________ लघुविद्यानुवाद २७५ है उनको मन्त्र तत्र यन्त्र फलते भी है इस तरह के कार्य मे इस यन्त्र को अष्ट गध से तैयार कराके पास मे रखने से पीडा दूर होती है शाति मिलती है। भोजपत्र पर अथवा कागज पर लिख पीडित के गले या हाथ पर बाँधने से अथवा पास में रखने से लाभ होता है । इस यन्त्र को कासे के स्वच्छ पात्र मे अष्ट गध से लिखकर पी सकता है, उत्तम पानी से धोकर पानी पिलाने से सभी ज्वरादि पीडा नष्ट हो जाती है ।।२७।। चोबीस जिन पेसठिया यन्त्र ॥२८॥ अथ पच षष्टि यत्र गभित चतुर्विशति जिन स्तोत्रम । बन्दे धर्म जिनसदा सुख कर चन्द्र प्रभ नाभिज । श्री मन्दिर जिनेश्वर जय कर कुन्थु च शाति जिनम् । मुक्ति श्री फल दायनन्त मुनिप बधे सुपार्श्व विभु । श्री मन्मेध नृपात्म जच सुखद पार्श्व मनाडे भीष्टदम ॥१॥ श्री नेमीश्वर सुब्रतोच विमल पद्म प्रभ सावर सेवे सभव श गूर नमि जिन मल्लि जया नदनम् । बदे श्रीजिन शीतल च सुविध सेवेड जित मुक्ति द श्री सघ वतपञ्च विशति नभ साक्षा दर वैष्णवम् ।।२।। स्तोत्र सर्व जिनेश्वरे रभिगत मन्त्रेषु मन्त्र वर एतत् स सङ्गत यन्त्र एव विजयो द्रव्यो लिखि त्वाशु भे पायें सन्ध्रिण भाणा सब सुखदो माङ्गल्यमाला प्रदो वामागे वनिता नारास्त दितरे कुर्वन्तुये भावत ॥३॥ प्रस्थाने स्थिति युद्धवाद करण राजादि सन्दर्शने । वश्यार्थे सुत हेत वैधन कृते रक्षन्तु पार्वे सदा । मार्गे सविण मे दवाग्नि ज्वलिते चिन्ता दिनि नाशिने । यन्त्रो ऽय मुनि नेत्रसिह कविता सङ्ग स्थित. सौख्यदः ॥४॥ इति पच षष्टि यन्त्र स्थापना ॥२८॥ ऊपर बताया हुआ स्तोत्र बोलते जाइये और जिन तीर्थ कर भगवान के नाम का अक आवे, उतनी अक सख्या लिखने से पेसठिया यन्त्र तैयार हो जाता है। इस तरह के यन्त्र को, ताबे के पतडे पर तैयार कर शुद्ध कराने के बाद घर मे स्थापित कर ऊपर बताया हा स्तोत्र नित्य पढे, स्तुति बोल कर मन करना चाहिये । इस तरह के यन्त्र को भोजपत्र पर लिखवा कर पास मे रखने से परदेश जाते समय अथवा परदेश मे रहते समय में लाभ होता रहेगा। किसी के साथ वाद विवाद करने से जय प्राप्त होगी राजा के पास अथवा और किसी के पास जाने से प्रादर होगा। नि. सन्तान को पुत्र प्राप्ति होगी निर्धन को धन प्राप्त होगा। मार्ग मे किसी प्रकार का भय नही होगा चोरो के उपद्रव से बचाव होगा। अग्नि प्रकोप से पीडा न होगी और अकस्मात भय में रक्षा होगी चिता नष्ट होगी प्रत्येक कार्य मे विजय प्राप्त होगी इसलिये जो अपना भविष्य
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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