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________________ ६५० लघुविद्यानुवाद dam - जो अलसी के तेल में, घिसिये हतश मिलाय । कोडि के लेपन करे, कंचन तन हो जाय ॥ २४ ॥ जो कोई संसार में, अधा पावे जे कोय । सात दिवस तक प्रांजिये, दृष्टि चौगुनी होय ॥ २५ ॥ श्याम नगद सग रगड़ के, वोसो नख लिपटाय । जो नर होय कुमारजी, देखत वश हो जाय ।। २६ ॥ कस्तूरी सू प्रांजिये, प्रात समय लो लाय । मौत जो लिखिये सवन की, काल पुरुष दरशाय ।। २७ ।। गंगाजल स प्रांजिये, दोनों नेत्र ज मांही। वरसा वरसे धूल की, या में संशय नाही ॥ २८ ॥ जो प्रांजे निज रक्त सू, भर के दौऊ कोय । देखे तीन लोक कू, अपनी ऑखन सोय ।। २६ ॥ जो प्रांजे निजरक्त, खुले रागनी राग। जो घिस पावे दूध सू, होय सिद्ध सू भाग ।। ३० ॥ रक्त गुजा यह कल्प है, सूक्ष्म कहियो बनाय । जो साधे सो सिद्ध हो, या में संशय नाय ।। ३१ ।। नोट :-इस रक्त गुजा कल्प के दोहे का अर्थ इतना सरल है कि कम पढ़ा लिखा हुआ व्यक्ति भी अच्छी तरह जान लेता है । इसलिए यहा पर इसका हिन्दी अनुवाद करना उचित नहीं है। ॥ इति ॥ मनुष्य की खोपडी पर, रताजन, भीमसेन कपूर तथा रविपुष्य के रोज जिस स्त्री के पहली बार प्रसूति मे लडका पैदा हुआ हो उस, स्त्री के दूध मे रवि पुष्य के दिन गोली बनावे, काम पडे तव तीन दिन आँख मे अजन करने से, ऑख के सर्व रोग नाश को प्राप्त होते है।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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